दहन होत हर साल, पर मरता नहीं अंदर का कैकशी लाल…

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दहन होत हर साल, पर मरता नहीं अंदर का कैकशी लाल...

नारायण-नारायण…नारद के मुख से यह शब्द सुनकर इंद्र का ध्यान उनकी तरफ अनायास चला गया। नारद बोले देवराज, तुम कहां खोये हो। जब से नारायण क्षीरसागर विश्राम में गए हैं, तब से तुम्हारा कोई पता ही नहीं चल रहा। क्या शिव की सत्ता तुम्हें रास नहीं आ रही। कम से कम आज तो नीलकंठ के दर्शन कर लेते। नवरात्रि का पर्व संपन्न हुआ और आज ही दशहरा है। तुम भी तो साक्षी थे, जब नारायण के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने त्रेतायुग में शिवभक्त दशानन रावण का वध किया था। वही रावण जिससे तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मचती थी। वही रावण जिसने पतिव्रता सीता का हरण किया था। वही रावण जिसने काल को भी अपने दरबार में बंधक बनाया था। और तुमने तो खुद रावण का दंश भोगा है देवराज। क्या तुम भूल गए कि मेघनाद ने तुम्हें बंदी बनाकर रावण को मुक्त कराया था। इस युद्ध में मेघनाद ने छल से देवराज तुम्हें बंदी बनाया था और अपने पिता रावण को तुम्हारी कैद से छुड़ा लिया था। इसके बाद ब्रम्ह देव ने प्रकट होकर मेघनाद से निवेदन किया था कि वह सृष्टि के संतुलन के लिए तुम्हें यानि देवराज इंद्र को अपनी कैद से मुक्त कर दे। इस पर मेघनाद ने ब्रम्हदेव की बात मानकर तुमको मुक्त किया था लेकिन उसके बदले अमरता का वरदान मांग लिया था। जब ब्रम्हदेव ने यह वरदान देने से मना किया तो दूसरा वरदान दिया था। दूसरे वरदान में ब्रम्हदेव ने अजेय रहने के लिए कुलदेवी निकुंबला का यज्ञ करने को कहा था। ब्रह्मदेव ने मेघनाद को बताया था कि संकट के समय जब वह उस यज्ञ से प्रकट होने वाले अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित अजेय रथ पर सवार होकर निकलेगा तो उसे कोई परास्त नहीं कर सकेगा। क्या तुम यह सब भूल गए देवराज…कि आज उसी मेघनाद के पिता रावण का वध हुआ था और उससे पहले ही तुम्हें बंदी बनाने वाले उसके पुत्र मेघनाद का वध लक्ष्मण ने किया था। उसके कुलदेवी निकुंबला के यज्ञ को भंग करके। 

कैकशी लाल के वध को याद करो देवराज। तुम्हें याद है न देवराज कि विश्रवा महान ऋषि पुलस्त्य के पुत्र थे। उनकी माता का नाम हविर्भुवा था। विश्रवा स्वयं अपने पिता के समान वेदविद् और धर्मात्मा थे। रामायण का प्रख्यात पात्र रावण और कुबेर विश्रवा ऋषि के ही पुत्र थे। विश्रवा की दो पत्नियां थी पहली पत्नी का नाम कैकशी जो राक्षस सुमाली और राक्षसी तड़का की पुत्री थी कैकशी ने छल से इनसे विवाह किया जिससे इन्होंने कैकशी को श्राप दिया की मेरे द्वारा उत्पन्न पुत्र राक्षस होंगे। बाद में जब कैकशी भी इनकी तरह तप और पूजा करने लगी, जिससे इन्होंने वर दिया कि एक पुत्र नारायण का भक्त होगा और वो हमारे वंश को आगे तक ले जाएगा। तो वह कैकशी लाल रावण और उसका पुत्र मेघनाद का वध आज देवभूमि में गांव, कस्बा, नगर, महानगर सभी जगह हो रहा है। उठो और देवभूमि का भ्रमण करो देवराज। कुछ फीलगुड करो और यह भी देख लो कि कलियुग में रावणी प्रवृत्तियों का क्या हाल है?

देवराज इंद्र ने महर्षि नारद को प्रणाम किया और बोले कि ऋषि श्रेष्ठ, मैं देवभूमि के उन्हीं नजारों पर ही नजरें इनायत कर रहा था। जहां बमुश्किल ही कोई जगह दिख रही है, जहां रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले न जल रहे हों। और यह देखते हुए मैंने जब चारों तरफ नजरें दौड़ाईं तो यही दिख रहा था कि लोगों का उत्साह साल भर में पुतला जलाने को लेकर ही है। पुतला जलने से पहले लोग रावण, मेघनाद और कुंभकरण के साथ फोटो भी बड़े शौक से खिंचवाते हैं। उनका ध्यान राम, लक्ष्मण, हनुमान बने पात्रों की तरफ बिल्कुल नहीं जाता और उनके साथ सेल्फी लेने की इच्छा भी नहीं होती उनकी। पर रावण के साथ सेल्फी और फोटो को सहेज कर रखते हैं। गूगल बाबा से इमेज और ज्ञान की बातें उधार लेकर फेसबुक, इंस्ट्राग्राम, ट्विटर और व्हाट्सएप वगैरह पर डालकर अपील करना कि बुराईयों का दहन करें और काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार, घृणा वगैरह वगैरह दसों बुराईयों को खत्म कर मर्यादा रूपी राम के सद्गुणों से भर जाएं। पर भरता कोई नहीं है, सब खाली हैं। हां दिखावा ऐसा कि मानो सतयुगी मानव वही हैं और दोष ऐसा कि बाकी सब में कलियुगी गुण ही नजर आते हैं। इंसान की हालत कछुए के ठीक उलट हो गई है। जैसे कि कछुआ ऊपर से कठोर और अंदर से कोमल होता है और जब कोई बाहरी जीव हमला करता है तो कोमल अंगों को कठोर कवच से ढक लेता है। वह कवच अभेद्य है। इंसान इसके उलट ऊपर से सद्गुणों से भरा नजर आता है लेकिन अंदर झांको तो दुर्गुणों की खान नजर आता है। यानि ऊपर से कोमल दिखता है और अंदर से कठोरता भरी पड़ी है इंसानों में। और जब बाहरी हमला होता है तो सद्गुणों के कवच से दुर्गुणों को सहेज लेता है। और इन्हीं दुर्गुणों को अपने अंदर पालकर रखता है। और साल भर में पुतलों को जलाकर एंजॉय करता है। हालत वैसी ही है कि पुतलों का दहन होत हर साल, फिर भी मरता नहीं अंदर का कैकशी लाल…।

महर्षि अब आप ही बताओ, त्रेता में तो रावण मरता था, तो जड़ से खत्म हो जाता था। अब रावणी प्रवृत्तियां जिंदा है और हर साल पुतला जलाकर रावण मारने का दिखावा उतनी ही जोर-शोर से होता है। लाखों की आतिशबाजी, बैंड बाजों का शोरगुल, कानफोड़ू ध्वनि प्रदूषण ऊपर से। बस इसी उधेड़बुन में पड़ा था कि आप आ गए महर्षि। नारद जी बोल पड़े कि देवराज आप भी कहीं दिखावा कुछ ज्यादा तो नहीं कर रहे…अब इतने भोले-भाले तो आप भी नहीं हो। अगर मैं गलत नहीं हूं तो…तुम इतने भोले भी नहीं कि कलियुगी मानव के ढोंग देखकर इतने सोच में डूब जाओ और गोता खाने लगो। नारायण-नारायण रटते देवर्षि विदा हो गए और देवराज धीरे से मुस्कराकर देवलोक में विचरण करने लगे…।