

रोमांचक संस्मरण : जाको राखे साइयां मार सके ना कोय-मृत्यु से साक्षात्कार 6 इंच दूरी पर
डॉ तेज प्रकाश व्यास
साल 1974।
रामपुरा, जिला मंदसौर।
मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर मैं जूलॉजी लेक्चरर के पद पर नियुक्त हुआ था। छोटी-सी जगह, लेकिन सपनों से बड़ी। दीक्षित मोहल्ले में मुझे बिजली सहित 25 रुपये प्रतिमाह पर एक बड़ा-सा मकान मिल गया—शांत, हरियाली से घिरा, सीताफल के पेड़ों की खुशबू से महकता मोहल्ला।
मेरे साथ रहती थीं मेरी पत्नी डॉ. मधु व्यास, हमारा एक वर्षीय बेटा सौरभ, और मेरे दो छोटे भाई—दुष्यंत और कृष्ण वल्लभ।
घर की सादगी में भी अपनापन था।
बेडरूम में 4×6 फीट का नेवार का पलंग था, जिस पर चारों ओर से मच्छरदानी लगी थी—हल्की-सी ढीली, रस्सियों से असंतुलित ढंग से बंधी हुई थी।
उस रात सब कुछ सामान्य था। कमरे की लाइट जल रही थी, क्योंकि आसपास जंगल था और रातभर अंधेरा गहरा रहता था। हम तीनों—मैं, मधु और सौरभ—पलंग पर चैन से सो रहे थे।
लेकिन नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था।
रात के तीसरे पहर,शायद रात्रि के 2 बजे अचानक मेरी नींद टूटी।
एक अजीब-सी साँसों की आवाज कानों में पड़ी। जैसे कोई जीव बहुत तेज़ी से साँसें ले रहा हो। आँख खुली, तो जो दृश्य देखा, उसने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए।
मच्छरदानी के ठीक ऊपर, मेरे सिर से सिर्फ 6 इंच की दूरी पर, एक कोबरा—Naja naja—फन फैलाए बैठा था!
वह उजालदान से फिसलकर (सीताफल के पेड़ पर चढ़कर उजालदान तक पहुंचा,) से सीधे मच्छरदानी पर गिरा था। भारी शरीर के कारण मच्छरदानी के असंतुलित ताने में वह झूले की तरह बीच में आकर बैठ गया था—साक्षात महाकाल का हार 6 इंच दूरी मेरे सिर पर मंडरा रहा था।
पल भर को सब कुछ थम गया। साँसें रुकीं, दिल की धड़कन तेज हो गई।
पर किसी अनजानी शक्ति ने मुझमें धैर्य भर दिया।
मैंने धीरे से मधु को जगाया और कान में फुसफुसाया—
“सौरभ को लेकर बहुत धीरे से बाहर निकलो… शोर मत करना।”
मधु ने अपनी सूझबूझ से न केवल सौरभ को उठाया, बल्कि दोनों भाइयों को भी सतर्क किया और चुपचाप मकान मालिक को आवाज दी।
एक लंबा लकड़ी का पत्ता लाया गया। मैं पलंग के किनारे से थोड़ा आगे बढ़ा, मच्छरदानी के नीचे धीरे से पत्ता सरकाया, और हल्के से कोबरे को ऊपर हौले से धरती पर उछाल दिया। जेंटली उछालना ज़रूरी था। जानता था फोर्स थ्रो सर्प की नाजुक पसलियां तोड़ कर सर्प को कमजोर कर सकता था।
कोबरा को पलंग से जेंटली
स्किट कराया, आंगन की ओर भागा, फिर आंगन पार करता हुआ बाहर निकल गया।
मैं थम गया, पर जिंदगी जैसे फिर से चल पड़ी।
उस रात मैंने सीखा—जीवन और मृत्यु के बीच केवल एक सांस का फासला होता है। या कहें 6 इंच की दूरी रही।
एक सामान्य जीवविज्ञानी होते हुए भी, थोड़ी-सी जानकारी और बहुत सारी सजगता ने उस रात मेरे पूरे परिवार को बचा लिया।
हर सर्प तैरना जानता है, हर सर्प पेड़ पर चढ़ सकता है।
और हर दुर्घटना बस एक क्षण की चूक पर निर्भर करती है—चाहे वह साँप का डसना हो या सड़क दुर्घटना।
सावधानी ही जीवन की सबसे बड़ी रक्षा है।
प्रकृति से डरिए नहीं, उसे समझिए और सम्मान दीजिए।
Dr Tej Prakash Poornanand Vyas
Herpetoscientist, IUCN SSC Gland Switzerland.
Retd Principal, Govt Raja Bhoj PG College, Dhar
Residence at Indore