बैतूल में मेरे कार्यकाल में जनवरी 1986 में हर्ष मन्दर तीसरे कलेक्टर के रूप में आए। वे एक अद्भुत और अनोखे प्रकार के अधिकारी थे। उनके जैसा जन हितैषी मैंने अपनी पूरी सेवाकाल में किसी और को नहीं देखा।उनमें अफ़सरी का अभिमान शून्य था।वे अत्यधिक विनम्र तथा हृदय से जनता की सेवा के लिए समर्पित थे। ग़रीब ग्रामीण जनता की सेवा वे सरकारी योजनाओं के माध्यम से आंकड़ों के लिए नहीं अपितु अपने हृदय की पूरी शक्ति के साथ एक अभियान के रूप में करते थे। यहाँ पर यह मैं बताना चाहूंगा कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच उन्होंने अविस्मरणीय कार्य किया और गुजरात के दंगों के बाद 2002 में 20 वर्ष की सेवा के बाद उन्होंने IAS की नौकरी छोड़ दी।
उन्होंने कारवाँ-ए-मोहब्बत नाम का अभियान हिंदू- मुस्लिम एकता के लिए चलाया। वे एक लेखक, सामाजिक एक्टिविस्ट बन गए और शिक्षक के रूप में ग़रीबी विषय पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट अहमदाबाद और सेंट्स स्टीफेंस कॉलेज दिल्ली में पढ़ाने लगे।UPA सरकार के समय वे नैशनल एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य बनें जिसकी चेयरपर्सन स्वयं सोनिया गांधी थीं। इस काउंसिल के सुझाव पर ही सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और मनरेगा जैसे क़ानून बनाए गए।
अपना कार्यभार संभालने के बाद वे तुरंत जनकल्याण की योजनाओं के कार्यान्वयन में लग गए। वे मुझे भी कई बार अपने साथ ब्लॉक मुख्यालय पर ले जाते थे।उस समय वर्तमान स्वरूप का पंचायती राज नहीं आया था तथा सभी शासकीय योजनाओं का कार्यान्वयन BDO के माध्यम से होता था। एक बार वे मुझे प्रांत: शाहपुर ब्लॉक ले गए।
वहाँ पर उन्होंने सरकार की योजना के हितग्राहियों ( जिन्हें योजना से लाभ मिलता है) से संबंधित अभिलेखों का गहराई से निरीक्षण किया तथा कुछ हितग्राहियों को दूर दराज़ के क्षेत्रों से ब्लॉक मुख्यालय पर बुलाने के लिए अनेक लोगों को विभिन्न दिशाओं में भेजा।घंटों बाद अनेक हितग्राही पुरुष महिलाएं एकत्र हुईं।उनसे सघन पूछताछ करने पर ऋण और सब्सिडी वितरण में भारी अनियमितताएं पाई गईं। हर्ष मंदर ने इसकी औपचारिक जाँच के आदेश दे दिए।इन निरीक्षणों का अच्छा प्रभाव हुआ और सरकारी योजनाओं में बैंकों की मिलीभगत से होने वाले भ्रष्टाचार पर रोक लग गई। ब्लॉक ऑफिस से सहायता न मिलने पर कई ग्रामीण बैतूल मुख्यालय पर आकर भी शिकायत करने लगे जिनका यथासंभव निराकरण किया गया।
बैतूल की एक संस्था त्रिवेणी ने कुल हिन्द मुशायरा करवाने का एक कार्यक्रम किया। यह कार्यक्रम सांप्रदायिक एकता की भावना से ओतप्रोत था। इसमें मशहूर शायर बशीर बद्र भी सम्मिलित हुए थे। मैंने और हर्ष मंदर ने इसमें पूरा सहयोग किया और पूरे समय कार्यक्रम में उपस्थित रहे।
कई बार हम दोनों ज़िले के विभिन्न क्षेत्रों में भ्रमण के लिए साथ निकलते थे। यद्यपि उन्हें क़ानून व्यवस्था से संबंधित कार्यों में विशेष रुचि नहीं थी फिर भी मैं इन भ्रमण के दौरान कभी-कभी उन्हें थानों में ले जाता था। एक बार आठनेर ब्लॉक के अंतर्गत दूरस्थ आदिवासी क्षेत्र में स्थित हिडली नामक स्थान पर पहुँचे जहाँ प्राइमरी हेल्थ सेंटर की शाखा थी जिसे मिनी PHC कहा जाता था। इसके निरीक्षण में चौंकाने वाला दृश्य सामने आया।मिनी PHC एक अच्छे परिसर में शासकीय भवन में बना था, परंतु उसके बरामदे में गोबर का अंबार लगा हुआ था।
यह ढोरों का विश्राम घर बना हुआ था। दरवाज़ों के तालों में मकड़ी के जाले लगे हुए थे। बड़ी मुश्किल से चौकीदार को बुलाया गया जो स्थानीय आदिवासी था। उसने बताया कि डॉक्टर और कम्पाउण्डर यहाँ बहुत समय से नहीं आए हैं।इसके बाद उसी ग्राम के शासकीय विद्यालय में गए जो एक झोपड़ी में चलता था लेकिन छात्र बाहर खुले में बैठे मिले और सौभाग्यवश शिक्षक उपस्थित मिले। कक्षा 1 से 5 तक के सभी बच्चे एक साथ एक शिक्षक से पढ़ रहे थे। हर्ष मंदर ने बच्चों से अपना नाम लिखने को कहा लेकिन विडंबना थी कि कोई भी बच्चा अपना नाम सही ढंग से नहीं लिख सका। यह ग्रामीण भारत का वास्तविक चेहरा था और हमारे विशाल सरकारी तंत्र का खोखलापन सिद्ध कर रहा था।
बैतूल ज़िले के पाथाखेड़ा में वेस्टर्न कोल
फ़ील्ड की कोयले की खदानें हैं। वेस्टर्न कोल्ड फ़ील्ड का मुख्यालय नागपुर में स्थित है। एक दिन पथाखेड़ा से यह सूचना मिली कि वहाँ की एक खदान के अंदर दुर्घटना में चार श्रमिकों की मृत्यु हो गई है और उनके शव खदान से बाहर निकाल लिए गए हैं। बड़ी संख्या में उत्तेजित श्रमिक खदान के पास एकत्र हो गए हैं और कोल माइंस् के जनरल मैनेजर के सी विज को गिरफ़्तार करने की माँग करने लगे। मैं और हर्ष मन्दर पाथाखेड़ा के लिए रवाना हो गए और अतिरिक्त पुलिस बल को पीछे आने के लिए कहा। खदान पहुँच कर बहुत आक्रामक श्रमिकों का सामना करना पड़ा। हमारे पहुँचने के पहले जनरल मैनेजर के सी विज जब घटनास्थल पहुँचे तो कुछ श्रमिकों ने उन पर पथराव कर दिया और वे वहीं लगे हुए मंदिर के अंदर दरवाज़ा बन्द करके शरण लिए हुए थे।
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श्रमिकों की माँग थी कि जनरल मैनेजर को हथकड़ी लगाकर थाने ले ज़ाया जाए। मैंने श्रमिकों को समझाने का प्रयास किया कि हम मैनेजमेंट के विरूद्ध उचित वैधानिक कार्रवाई करेंगे परन्तु हथकड़ी की बात पर मैं सहमत नहीं था। मैं श्रमिकों से बातचीत करके समय निकाल रहा था ताकि तब तक पुलिस बल पहुँच जाए और मैं शक्ति के साथ उनसे बात कर सकूँ और आवश्यकता पड़ने पर हिंसक भीड़ से बलपूर्वक निपट सकूँ।हम लोग उत्तेजित श्रमिक नेताओं से बहस कर ही रहे थे कि अचानक बीच में हर्ष मंदर जनरल मैनेजर को हथकड़ी लगाने के लिए तैयार हो गए।यह सुनकर मैं स्तब्ध रह गया। हर्ष मन्दर की घोषणा से श्रमिकों का हौसला बहुत बढ़ गया और मुझे के सी विज को मंदिर खुलवाकर और हथकड़ी लगाकर 50 मीटर दूर खड़ी जीप तक पैदल ले जाना पड़ा। उन्हें साथ लेकर जैसे ही हम लोग गाड़ियों से निकले तो हमारी गाड़ियों पर पथराव शुरू हो गया लेकिन किसी तरह हम लोग निकट के सारणी थाने पहुँच गए। थाने पहुंचकर के सी विज के विरुद्ध असावधानी पूर्वक मृत्यु का कारण बनने के लिए धारा 304A IPC के अंतर्गत कार्रवाई कर शीघ्र ही उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया।
यह घटना सामान्य नहीं थी। जनरल मैनेजर को हथकड़ी लगाने का मामला तूल पकड़ गया। कोल माइंस ऑफ़िसर्स यूनियन ने पूरे भारत में खदानों में काम ठप कर देने की धमकी दी। केन्द्रीय मंत्री श्री वसंत साठे, जो कुछ ही दिनों पूर्व तक कोयला मंत्री भी थे, वे बार बार मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा जी को इस घटना में उच्चाधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए कह रहे थे।धारा 304A IPC में हथकड़ी लगाना वैधानिक रूप से उचित नहीं था और इसीलिए मैं घटनास्थल पर इसका विरोध कर रहा था। फिर भी हथकड़ी लगाने के पक्ष में कुछ तर्क दिये जा सकते थे। घटना की जाँच करने सर्वप्रथम रेंज DIG श्री बी के दामले आए और उन्होंने पुलिस प्रशासन की कोई गलती नहीं पाई। इस जाँच से असंतुष्ट मुख्यमंत्री ने इसके बाद भोपाल कमिशनर श्री सत्यम को जाँच करने के लिए भेजा।
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उन्होंने पुलिस प्रशासन के पक्ष में एक शक्तिशाली रिपोर्ट प्रस्तुत की। मुख्यमंत्री श्री वोरा इससे भी संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने अपने विश्वासपात्र स्पेशल DG इंटेलिजेंस श्री एम नटराजन को जाँच के लिए भेजा। श्री नटराजन ने मुझसे सारणी गेस्ट हाउस में काफ़ी देर तक सख़्त शैली में पूछताछ की।मैं घटना जिस प्रकार से हुई थी ठीक उन्हीं तथ्यों को कह रहा था। अंततोगत्वा मेरा और कलेक्टर हर्ष मंदर का बैतूल से स्थानांतरण कर दिया गया। मेरे बैतूल से जाने के बाद कोल मैनेजमेंट की तरफ़ से जबलपुर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई जिसमें उन्होंने हथकड़ी लगाने की पूरी ज़िम्मेदारी मेरी बतायी। मैंने हाईकोर्ट के समक्ष हथकड़ी लगाने के निर्णय को अपना ही बताया और उसके समर्थन में अपने तर्क दिए। कुछ वर्षों के बाद हाईकोर्ट ने याचिका समाप्त कर दी।
पाथाखेड़ा की यह घटना मेरे और हर्ष मन्दर के स्थानांतरण का कारण बनी। आश्चर्यजनक रूप से मेरी जाँच करने आये श्री नटराजन ने मेरी पदस्थापना पुलिस मुख्यालय में अपनी ही शाखा में करवा दी। 31 मई, 1986 को मैंने पुलिस अधीक्षक बैतूल का प्रभार सौंप दिया।