Flashback : अपराध विज्ञान के विपरीत वह चोरी और अनोखा चोर!

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Flashback : अपराध विज्ञान के विपरीत वह चोरी और अनोखा चोर!

वर्ष 1978 की शरद ऋतु की खिली हुई धूप में इन्दौर में एक जुलूस राजवाड़े से कमिश्नर कार्यालय तक एम जी रोड पर निकाला गया। यह एक अभूतपूर्व जुलूस था क्योंकि इसमें शहर के अनेक संभ्रांत नागरिक और उद्योगपति मौन धारण कर जुलूस में चल रहे थे।

यह जुलूस एम जी रोड स्थित प्रसिद्ध उद्योगपति कासलीवाल के अनूप भवन की तीसरी मंज़िल पर स्थित मंदिर से भगवान महावीर की आठ चाँदी की मूर्तियों की चोरी के विरुद्ध निकला गया था।घटना स्थल थाना तुकोगंज का था जो मेरे CSP क्षेत्र में आता था।

 

घटना के कुछ ही दिनों बाद इंदौर विमान तल पर तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा का आगमन हुआ।हवाई जहाज़ से उतरते ही उन्होंने पुलिस अधीक्षक श्री आरएलएस यादव से इस चोरी को तत्काल पकड़ने के निर्देश दिए।श्री यादव ने उनसे कहा कि यह चोरी निश्चित पकड़ी जाएगी।

चोरी की रात की अगली देर सुबह इस चोरी का पता चला।मैं यथासंभव तत्काल TI आर के शर्मा और इंस्पेक्टर क्राइम सोबरन सिंह भदौरिया के साथ अनूप भवन पहुँचा।तीसरे मंज़िल तक पहुंचकर भी मैं यह समझने में पूरी तरह असमर्थ रहा कि रात के अंधेरे में इतने सुरक्षित और ऊँचे भवन की ऊपरी मंज़िल के मंदिर तक चोर कैसे पहुँचा।

कई बार नीचे से ऊपर और चारों ओर चक्कर लगा कर देखने के बाद भी कुछ समझ में नहीं आया कि चोर वहाँ तक कैसे पहुँचा होगा। इस घटना से कुछ ही दिनों पहले पलासिया तथा तुकोगंज थाना क्षेत्र की पॉश कॉलोनियों में तथा थाना संयोगिता गंज की व्हाइट चर्च के पास चार बड़ी चोरियाँ हो चुकी थी जिनका कोई सुराग़ नहीं मिल रहा था।

 

इन सभी चोरियों में चोर या चोरों का दल सोना, चाँदी और कैश के अतिरिक्त कोई और सामान नहीं चुराता था। इन चोरियों से पुलिस की समाचार पत्रों, विशेषकर नईदुनिया, में कटु आलोचना होना स्वाभाविक था और अनूप भवन की चोरी से तो वातावरण और भी गंभीर हो गया था क्योंकि भगवान महावीर की मूर्तियों के साथ धार्मिक भावनाएँ भी जुड़ गई थीं।

उस काल में पुलिस चोरियों के अनुसंधान को बहुत प्राथमिकता देती थी परन्तु धीरे- धीरे राजनीतिकरण के कारण पुलिस अपने मुख्य कर्तव्यों से विमुख हो गई।उस समय मैं पूरी तरह आश्वस्त था कि ये सभी चोरियाँ पकड़ी जाएंगी, भले ही इसमें कुछ समय लग जाय। इस आत्मविश्वास का कारण वह व्यवस्था थी जो पिछले एक वर्ष से हम लोगों ने निर्मित की थी।इस व्यवस्था के सूत्रधार CSP सर्राफ़ा, श्याम स्वरूप शुक्ला थे।

वे सीधी भर्ती के कुशाग्र बुद्धि और परिश्रमी DSP थे और उन्हें फ़ील्ड का चार-पाँच वर्षों का अनुभव भी था।प्रत्येक रात्रि 10 बजे, बिना नागा, एकांत में स्थित थाना सदर बाज़ार थाने में मेरे सहित CSP शुक्ला, इंस्पेक्टर क्राइम भदौरिया तथा दो तीन अन्य संबंधित थाना प्रभारी (TI ) पूछताछ (इंट्रोगेशन) के लिए एकत्र होते थे।

वहाँ पर पूरे शहर के संदेहियों, जेल से छूटे चोर तथा पुराने रिकॉर्ड के अपराधियों को बुलाया जाता था और उनसे घंटो बड़ी कठिन और श्रमसाध्य तरीक़े से पूछताछ की जाती थी।जो संदेही यह कहते थे कि उन्होंने चोरी नहीं की है, उनसे हम यह पूछते थे कि अनुमान लगाओ फिर किसने की होगी।

इन लोगों से प्राप्त जानकारियों का मूल्यांकन करना, उन्हें छाँट कर घटना स्थल पर जाकर भौतिक सत्यापन करना आदि हमारे रोज़मर्रा के कार्य थे। पूरे दिन की बारह-तेरह घंटे की ड्यूटी के बाद इस रात की ड्यूटी का नया अध्याय प्रारंभ होता था।हमारे इस परिश्रम से हमें इंदौर के अपराधिक जगत की बेहतरीन जानकारी हो गई थी और लगभग सभी चोरियां बरामद कर ली गईं थीं।नई बड़ी चोरियों के बारे में मुझे विश्वास हो गया था कि इसमें कोई नया चोर है, जिसका पुलिस में कोई रिकॉर्ड नहीं है।

जीवन के धरातल पर इस तरह की ड्यूटी के बाद जब रात्रि को एक- डेढ़ बजे घर पहुँचता था तो लक्ष्मी नींद से उठकर खाना गर्म करके देती थी।यदि देर रात को कोई और समस्या नहीं आती थी, तो सोने को मिल जाता था। सुबह से फिर पुलिस का कार्य शुरू हो जाता था।

अनूप भवन की चोरी के क़रीब 10 दिन बाद हवलदार कृष्णपाल, जिसकी ड्यूटी सर्राफ़ा बाज़ार में केवल संदेहियों पर निगाह रखनी थी, ने सूचना दी कि एक संभ्रांत पति पत्नी, जिन्हें वह पहले कुछ बार देख चुका था, वे फिर सर्राफ़ा बाज़ार में चाँदी बेचने आए थे। यही नहीं, उसने उनका देवास तक पीछा किया और वहाँ उनका घर देख कर आया।

एक पुलिस टीम ने देवास में उस संदेही के घर में छापा मारा तो उसके आंगन में सोना-चाँदी पिघलाने की भट्टी मिली। उस व्यक्ति को पकड़कर सदर बाज़ार थाने लाया गया।उसका नाम नंदलाल था तथा आश्चर्य कि वह सम्पन्न सिंधी समाज का था।उससे एक हफ़्ते तक प्रत्येक रात पूछताछ की गई, परंतु वह कुछ भी बताने को तैयार नहीं था।

अंततोगत्वा, एक रात उसी थाने पर एक अनुभवी पुराने अधिकारी की राय पर उसकी पत्नी को बुलाकर उसके सामने खड़ा किया गया तो वह विचित्र व्यक्ति घबराया और बोला इन्हें वापस कर दो और कलम उठाओ और मेरा बयान लिखो।उसने चार बड़ी चोरियाँ करना स्वीकार किया और अंत में अनूप भवन की चोरी करना भी स्वीकार कर लिया।वह तेज बुद्धि का ग़ज़ब का चोर था।

बिना किसी स्थान का चुनाव किये घूमता हुआ किसी भी मकान में विभिन्न तरीक़ों से (अपराध विज्ञान के सिद्धान्तों के विपरीत) अंदर घुस जाता था।ताला तोड़कर, खिड़की व रोशनदान से या पाइप के सहारे वह घर में घुस जाता था और आराम से केवल गहने और कैश लेकर बाहर निकलता था।

एक बार तो वह चोरी के घर में दो घंटे सो भी गया।अनूप भवन में पाइप के सहारे तीसरी मंज़िल तक एक साँस में चढ़ कर उसने दिखाया।गहनों को घर में गलाकर पत्नी के साथ सजधज कर व्यापारी बनकर, दूसरे चोरों के विपरीत, पूरे मूल्य पर सोना चाँदी बेचता था। उसने गला दी गई मूर्तियों के चित्र भी काग़ज़ पर बना दिये।

और तो और, अनूप भवन की चोरी के विरोध में निकले मौन जुलूस में वह स्वयं मनोरंजनार्थ सम्मिलित हुआ था। उसकी निशानदेही पर सर्राफ़ा बाज़ार से सोने-चॉंदी की भारी बरामदगी की गई।यह सारा कमाल हवलदार कृष्णपाल का शुरू किया हुआ था।
जैन समुदाय द्वारा हम लोगों का सम्मान किया गया और कालांतर में अनूप भवन निवासी उद्योगपति कासलीवाल का परिवार मेरा मित्र हो गया।