पूर्व में मैंने लिखा था कि विजय सिंह गृह सचिव के रूप में मंत्रालय में 1994 के प्रारंभ से शीघ्र ही विभाग का सफल संचालन करने लगे थे। नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह का उनकी कार्यशैली के लिए पूरा समर्थन था। विजय सिंह जी का स्वभाव बहुत निर्णायक था। वे फाइलों को अभिमत के लिए वित्त विभाग, सामान्य प्रशासन विभाग या विधि विभाग को अनावश्यक नहीं भेजते थे। अपने अधीनस्थ अधिकारियों की क्षमता का उनका आँकलन शीघ्र और सही होता था।कोई भी जब उनकी कसौटी पर खरा उतरता था तब वे उस पर पूरा भरोसा करते थे जिससे वह अपनी पूरी शक्ति से काम करता था।विभाग के रोज़मर्रा के छोटे मोटे मामलों में वे अपना समय बिलकुल नष्ट नहीं करते थे। वे फाइलों के बोझ से अपने को ऊपर रखते थे और विभाग की योजनाओं और भविष्य के सुधारों को सोचने के लिए उनके पास भरपूर समय और ऊर्जा रहती थी।
पुलिस स्थापना और बजट की मेरी फ़ाइलें उनके पास से तुरंत लौट कर आती थी। उन्होंने चारों बड़े शहरों की क़ानून व्यवस्था सुधारने के लिए मुझे बताया कि इसके लिए यह आवश्यक है कि वहाँ पर सक्षम और अच्छे रिकार्ड के पुलिस अधिकारी पदस्थ किए जायें। उन्होंने मुझसे रिकॉर्ड और अपने अनुभव के आधार पर नाम बताने के लिए कहा। जो भी नाम मैंने CSP और निरीक्षकों के लिए बताये वे पदस्थ कर दिए गए।
विधानसभा में अपने विषय के साथ-साथ सभी स्थगन और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के उत्तर बनाने और गृह राज्यमंत्री श्री सत्यदेव कटारे की औपचारिक एवं अनौपचारिक ब्रीफ़िंग का दायित्व उन्होंने मुझे पूरी तरह से सौंप दिया।मेरे प्रस्तावों को उनके द्वारा महत्व दिये जाने से मुझे अपने कार्य में काफ़ी आनंद आने लगा और मेरा मनोबल भी बढ़ गया। अनेक फाइलें मैं सेक्शन के स्थान पर स्वयं अपने स्तर से, अपने कुशल पीए आर डी सोलंकी की सहायता से, तैयार करके उन्हें भेजता था जिससे महत्वपूर्ण प्रकरणों का शीघ्र निराकरण हो जाता था।
विजय सिंह सुबह जल्दी आकर सारी फ़ाइलें निपटाकर सकारात्मक कामों में लग जाते थे। वे जिन्हें समय देते थे उनसे काफ़ी गहराई से बात करते थे। एक दिन उन्होंने मुझे सुबह बुलाकर टाइम मैगज़ीन देकर कहा कि इसमें जापान पुलिस के एक प्रयोग पर आर्टिकल पढ़कर मुझसे बात करिये।जापान में पुलिस कर्मियों ने अपने क्षेत्र के बुजुर्ग लोगों के पास जाकर उनसे उनकी समस्याओं की जानकारी ली तथा उनकी सुरक्षा आदि के संबंध में चर्चा की तो कुछ ही समय बाद बुजुर्गों के विरुद्ध अपराधों में भारी कमी आ गई।ये प्रोएक्टिव कम्युनिटी पुलिसिंग थी जिसमें पुलिस थाने पर बैठकर केवल शिकायतों की प्रतीक्षा नहीं करती है। कम्यूनिटी पुलिसिंग संभवतः उनका भविष्य का सपना था और मेरे भविष्य में कुछ करने का इशारा था।
गृह विभाग के पास यद्यपि अनेक शक्तियाँ है, परन्तु बजट के मामले में यह एक कमज़ोर विभाग है। पुलिस कर्मियों के वेतन और पेट्रोल आदि के अतिरिक्त कोई अर्थपूर्ण बजट विभाग के पास नहीं होता है। भारत सरकार उस समय प्रति वर्ष 1.25 करोड़ रुपये आधुनिकीकरण के लिए देती थी जिसमें राज्य सरकार को बराबर की मैचिंग ग्रांट देनी होती थी। वित्त विभाग राज्य सरकार का हिस्सा देने में बहुत आनाकानी करता था तथा यहाँ तक कि पूर्व के वर्षों में दी गई धनराशि की स्पष्ट स्थिति भी अस्पष्ट थी।
मैंने पिछले अनेक वर्षों के रिकॉर्ड की गहन छानबीन की और वित्त विभाग की उप सचिव अमिता शर्मा और डायरेक्टर बजट प्रसन्न दास के साथ चर्चाओं के बाद पिछले अनेक वर्षों की लंबित राशि जो लगभग 5 करोड़ रू थी उसे गृह विभाग को आवंटित करवाया। उस समय यह एक बड़ी राशि थी तथा यह गृह सचिव के विवेक के अनुसार व्यय होनी थी। इनसे लैबोरेटरी के अनेक महत्वपूर्ण उपकरणों के लिए धन राशि दी गई। ट्रैफ़िक सिग्नल लगाने के लिए इंदौर और भोपाल को 25-25 लाख एवं जबलपुर और ग्वालियर को 15-15 लाख की धन राशि पुलिस मुख्यालय को न देकर सीधे DIG रेंज को आवंटित की गई। भविष्य में यह धनराशि मुझे स्वयं व्यय करने का अवसर मिला।
विजय सिंह जी ने फंड प्राप्त हो जाने के बाद पुलिस अकेडमी सागर के भ्रमण का कार्यक्रम बनाया। उनके साथ कार में यात्रा करने का मुझे मौक़ा मिला। मैंने उन्हीं दिनों सचिवालय के पुस्तकालय में उपलब्ध मुग़ल शासकों की सभी मूल पुस्तकों का इंग्लिश अनुवाद पढ़ डाला था। सागर के मार्ग में मैंने उन्हें मुग़लों के प्रशासन के बारे में बहुत विस्तार से बताया जिसे वे बड़े ध्यान से सुनते रहे।
सागर अकादमी पहुँच कर वहाँ का हाल देखकर बहुत धक्का लगा।शौचालयों की व्यवस्था दयनीय थी। गेस्ट लेक्चरर को लाने के लिए कोई कार तक नहीं थी।आधुनिकीकरण फंड से उनकी सभी माँगें पूरी की गईं।
अपनी पदस्थापना के छह महीने बाद एक सुबह विजय सिंह जी ने मुझे बुलाकर बताया कि पुलिस महानिदेशक से मुझे DIG ग्वालियर रेंज बनाने का प्रस्ताव आया है। मैं बेहद प्रसन्न हुआ। लेकिन एक हफ़्ते बाद ही उन्होंने मुझे फिर बुलाकर मुस्कुराते हुए कहा कि आपका प्रस्ताव रिजेक्ट हो गया है। मैं उनके व्यवहार से आश्चर्यचकित था।इसके क़रीब 10 दिन बाद फिर मुझ को बुलाकर बोले कि आज आपका DIG इंदौर रेंज का आदेश हो रहा है, और ग्वालियर नहीं बल्कि इंदौर ही सबसे अच्छी जगह है।
वास्तव में वे पहले से ही मुझे इंदौर भेजना चाहते थे। उन्होंने कहा कि लेकिन आप जल्दी नहीं जाएंगे, सैकड़ो स्थानांतरण के प्रस्तावों पर मुख्यमंत्री से चर्चा के उपरांत आदेश निकाल कर ही जाइएगा।एक हफ़्ते बाद मंत्री श्री सत्यदेव कटारे, DGP श्री प्रताप सिंह एवं श्री विजय सिंह की उपस्थिति में ( तीनों केवल सुनते रहे) दिग्विजय सिंह जी के साथ मेरी स्थानान्तरण प्रस्तावों पर बैठक हुई और फिर आदेश जारी किये गये। 6 अगस्त, 1994 को अपने ढाई वर्ष के शासन में कार्यकाल के बाद मैं वल्लभ भवन से विदा होकर पुलिस विभाग के DIG रेंज, इंदौर के लिए रवाना हो गया।
एन. के. त्रिपाठी
एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।
वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।