आगमन का आह्वान है विसर्जन

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आगमन का आह्वान है विसर्जन

 

लेखिका और पूर्व पत्रकार, स्नेह सुरभि का कालम

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सहायक प्राध्यापक, ( हिंदी) बीएसएसएस कॉलेज भोपाल

सर्वं क्षणिकं क्षणिकम
इष्टकाम समृद्यर्थम पुनरागमनाय च।।

विसर्जन का अर्थ निष्कासन नहीं है, यथाशक्ति समर्पण के बाद पुनरागमन की ऊर्जा का आह्वान ही विसर्जन है। विसर्जन मोह से मुक्त करता है और मोक्ष की ओर उन्मुक्त बनाता है। आखिर जीवन यात्रा का अंतिम पड़ाव भी तो धर्म, अर्थ और काम से आगे बढ़कर मोक्ष प्राप्ति ही तो है। कर्ममार्गी के लिए मोक्ष, मोह से मुक्ति ही है, मोह चाहे – भौतिक हो या लौकिक, व्यक्ति से हो या प्रतिमा से। प्रथम पूज्य की विदाई यानी विसर्जन आज मोह से मुक्ति की ओर बढ़ते ही पुनः जी उठने के संकल्प को दोहराएगी और आरंभ होगा मुक्ति का तर्पण।

“ओम देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।

नमः स्वाहाये स्वधाये नित्यमेव नमोनमः।।”

जो बना है, वह नष्ट भी होगा। जिसका आरम्भ है, उसका अंत भी होगा। जो जन्मा है, उसकी मृत्यु निश्चित है। वह जो लौटकर नहीं आता, वह है समय। बीत गया सो बीत गया। जो बीता उसमें हासिल सफलता, सरलता, सुख, दुःख एवं असफलता कुछ भी नहीं ठहरती। स्मृतियों का अंश बनकर बस दोहराता रहता है जो बीत गई सो बात गई। जीवन की यात्रा को हरिवंश राय बच्चन कुछ इस तरह देखते हैं :-

“पल में अमृत पीने वाले के

कर से गिर भू पर आऊँगा,

जिस मिट्टी से था मैं निर्मित

उस मिट्टी में मिल जाऊँगा।”

वास्तव में यदि चिंतन किया जाए कि जीवन क्या है? तो सटीक जवाब है- जन्म से मृत्यु की यात्रा। क्षणिक घटनाओं का समूह। छोटी – छोटी कहानियों से मिलकर बनी एक जीवनी। कहानियाँ, उपलब्धियों की, तो कभी खो देने की। कहानी जीतने- की तो कभी हारने की, कभी शून्य से शिखर की- तो कभी अर्श से फ़र्श की। निरंतर कुछ रहता है, तो वह है कभी गिरकर संभलना, तो कभी संभल कर लड़खड़ाना और फिर लड़खड़ाकर गिर जाना और फिर उठने का जज़्बा, जुनून क़ायम रखने का हुनर, मनुष्य को कुछ ख़ास बना देता है। प्लेजरिज़म से रहित, नक़ल और मिलावट से परे चुनौतियों और संघर्षों की कसौटी पर कसा व्यक्ति जब व्यक्तित्व बनकर निखरता है तब उसका अनुभव हम सभी को वही सिखाता है, जो गीता में कृष्ण कहते हैं, क़ुरान में पेग़म्बर कहते हैं, ग्रंथ साहेब में गुरुओं की वाणी कहती है और बाइबल में यीशु कहते हैं कि “जीवन चाहे जिसका हो, होना कर्म प्रधान ही चाहिए। जिसमें फल की इच्छा तो हो, पर ऐसा लालच न हो जो इक्षित फल ना मिल पाने से निराश, हताश कर सत्य, प्रेम दया करने के मार्ग से भटका दे।”

अधिकार नहीं जिन बातों पर
उन बातों की चिंता कर के
अब तक जग ने क्या पाया है
मैं कर चर्चा क्या पाऊँगा ?

जीवन की यात्रा का सिद्धांत आगमन, निर्गमन और पुनरागमन ही है। पंचतत्वों की यह देह जीवन धारी आत्मा के वस्त्र मात्र है। देह के विसर्जन के लिए इसे सदकर्मों के तप से निर्मल कीजिए, वंदनीय बनाइये। करुणा, प्रेम, दया, क्षमा और परमार्थ के साथ पुरुषार्थ को सार्थक कीजिए। मिट्टी का यह तन, मिट्टी में उतनी ही पवित्रता से समाहित हो जितनी पवित्रता से होता है तर्पण। बच्चन साहब भी कहते है मृत्यु जीवन को अमरत्व देने का मार्ग है –

“मुझको अपना ही जन्म – निधन
है सृष्टी प्रथम, है अंतिम लय
मिट्टी का तन मस्ती का मन
क्षण भर जीवन मेरा परिचय।।”

विसर्जन के साथ अपने जीवन की यात्रा का मोक्ष निर्धारित करने के संकल्प के साथ ही तर्पण कीजिए दिव्यानुभूति का, जो मोह से मुक्त कर मोक्ष की ओर अग्रसर कर दे। कर्मों की वेदी में आहूत कीजिए जीवन के क्षण-क्षण को। जो मर्यादित हो, पवित्र हो, स्मरणीय हो।

स्नेह सुरभि।
सहायक प्राध्यापक एवं पूर्व पत्रकार