अब यही कसर बाकी, कि शिवसेना (Shiv Sena) है किसकी …

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अब यही कसर बाकी, कि शिवसेना है किसकी ...

अब यही कसर बाकी, कि शिवसेना (Shiv Sena) है किसकी …

एक बार फिर लोकतांत्रिक तरीके से सरकार में बदलाव की वही फिल्म और वही पटकथा, जिसका मंचन दो साल पहले मध्यप्रदेश में हो चुका है। फिल्म का रीमेक अब महाराष्ट्र में हो रहा है। कुछ स्टेप्स बदले है और अभिनय करने वाले चेहरे अलग हैं…पर नाटक के मूल पात्र समान ही हैं। अपने दल की सरकार से नाराजगी, विपक्षी खेमे में बैठी भारतीय जनता पार्टी की तरफ झुकाव, अपना राज्य छोड़कर दूसरे राज्य में मेहमाननवाजी, फिर तीसरे राज्य में पलायन और फोटोशूट, वीडियो जारी, इमोशनल और रिएक्शन शॉट्स और फिर विधानसभा अध्यक्ष-उपाध्यक्ष की भूमिका, बागियों की अयोग्यता पर फैसले का क्लाईमैक्स, और फिल्म का टर्निंग प्वाइंट सुप्रीम कोर्ट और फ्लोर टेस्ट तक का लंबा सफर…वगैरह।
और इसी बीच में राज्यपाल की निर्णायक एंट्री। फिर बिना फ्लोर टेस्ट सरकार में बने रहने की जिद पर अड़े मुख्यमंत्री का इस्तीफा ताकि फ्लोर टेस्ट की जलालत से बचकर खुली हवा में सांस ली जा सके। बदलाव है तो इतना कि मध्यप्रदेश में पाला बदलने वालों की मजबूरी इस्तीफा देना था। महाराष्ट्र में फिलहाल इस्तीफा की नौबत नहीं। आगे क्या होगा शिव जानें और उनकी सेना जाने। अगली नौबत जो आने वाली है, वह मैदानी फ्लोर टेस्ट की है कि शिव सैनिक किसके साथ हैं और शिवसेना पर किसका असली हक है।
मध्यप्रदेश में वही हुआ था कि फ्लोर टेस्ट की जगह इस्तीफा पेश किया गया था। महाराष्ट्र में भी वही हो रहा है। महाराष्ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के पहले ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का इस्तीफा और एक कदम आगे बढ़कर विधान परिषद की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया ठाकरे ने। न यहां कुछ कमलनाथ कर पाए थे, न वहां कुछ उद्धव कर पाए हैं। यहां कमलनाथ और शिवराज के बीच ट्यूनिंग अच्छी रही थी और अब हो सकता है कि वहां उद्धव और फडणवीस के बीच भी ट्यूनिंग अच्छी रहे।
अब यही कसर बाकी, कि शिवसेना है किसकी ...
शिंदे दो तिहाई बहुमत से अलग होकर शिंदे सेना बना लें और उद्धव के अधिकार में शिव सेना बनी रहे। फिर जो होगा, वह अगले विधानसभा चुनाव में देखा जाएगा। फडणवीस और उद्धव के बीच मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के नाते संबंधों की मधुरता की खुशबू पूरे महाराष्ट्र में बिखरती रहे। मातो श्री में बैठकर उद्धव अपने पिता बाला साहेब ठाकरे के दिनों को याद जरूर करेंगे। जब वह किंगमेकर की भूमिका में ही किंग पर भारी पड़ते थे। जब-जब मौका आया तो डॉयलॉग डिलीवरी में ही अच्छों-अच्छों को पसीना ला दिया। और अब किंग बनकर भी बैकफुट पर आना पड़ा।
अब यही कसर बाकी, कि शिवसेना है किसकी ...
बात फिर वहीं आ गई कि उद्धव ठाकरे फ्लोर टेस्ट परीक्षा में शामिल हुए बिना ही हार मान गए। अब शिवसेना पर हक बनाए रखने की परीक्षा में क्या होगा? अगर एक नाथ ने जिद पकड़ ली कि शिवसेना तो उनकी ही होगी। परीक्षा तो शिव सैनिकों की रगों में बह रहे खून की भी है कि यह हाई-प्रोफाइल ड्रामा देखकर और खलनायक को महाराष्ट्र की धरती पर पाकर उनका खून उबाल लेता है या नहीं। बागी विधायकों के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना लकी साबित हुआ, तो सत्तारूढ़ सेना, कांग्रेस और एनसीपी के लिए अनलकी रहा। अब असल परीक्षा आदित्य ठाकरे की भी है कि शिवसेना की यूथ ब्रिगेड क्या कयामत ला पाती है और किसके बाजुओं में कितना दम है, अब वही तस्वीरें जल्दी साफ हो जाएंगीं। देवेंद्र फडणवीस सीएम और एकनाथ शिंदे डिप्टी सीएम बनकर महाराष्ट्र को चलाएंगे या फिर इसमें भी बहुत सारे पेंच बाकी हैं?

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जिस समय महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार की सांसें उखड़ रही थीं। ठीक उसी समय मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में 5 वर्षीय दीपेंद्र की सांसे बोरबेल में गिरने से उखड़ने न लगें, इस पर फोकस हो रहा था। बचाव टीमें छतरपुर में उसी तरह जुटीं थीं, जिस तरह सुप्रीम कोर्ट में सरकार को फ्लोर टेस्ट से बचाने और सरकार गिराने के लिए फ्लोर टेस्ट कराने में बड़े-बड़े वकीलों की फौज जुटी थी। सरकार गिराने और सरकार बनाने के खेल में भी किसी का लिहाज नहीं होता। दीपेन्द्र को जीवित अवस्था में स्वस्थ हालत में बोर से निकल लिया गया है।
स्वास्थ्य चेकअप के लिए ऐम्ब्युलेन्स से हॉस्पिटल ले जाया गया। अब महाराष्ट्र में शिवसेना के बाकी विधायकों के स्वास्थ्य चेकअप की क्या व्यवस्था होती है और कितना फीलगुड कर पाते हैं, यह आने वाला समय ही बताएगा। समय तो शायद यही गुनगुना रहा होगा कि “पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान,भीलन लूटी गोपिका वही अर्जुन वही बाण…। समय ने यह जता दिया है कि वही बलवान है और महाराष्ट्र के बली पुरुष अब निर्बल नजर आ रहे हैं। कल फडणवीस को बैकफुट पर भेजते समय उद्धव ने नहीं सोचा होगा कि बली वह और सेना नहीं, समय है। फिर एक बार वही सवाल कि अब शिवसेना का क्या होगा?