सत्ता का खेल (Power Game), कोई पास, कोई फेल

558

सत्ता का खेल (Power Game), कोई पास, कोई फेल;

देश में विकास नहीं राजनीति फुलफ़ार्म पर है. महाराष्ट्र में सत्ता का महारास जारी है. मुख्यमंत्री पद से उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा देकर ‘फ्लोर टेस्ट ‘ का रोमांच ही समाप्त कर दिया ,उधर बिहार में एआईएमआईएम के चार विधायक औबेसी का साथ छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल के साथ आ गए हैं.कायदे से उन्हें सत्तारूढ़ भाजपा या जेडीयू के साथ नहीं जाना था ,लेकिन वे नहीं गए .इस बीच औबेसी अपने महा अभियान के तहत मध्यप्रदेश में सक्रिय होने का ऐलान कर चुके हैं .सियासत की इस आंधी-अंधड़ में उदयपुर के कन्हैयालाल की बर्बर हत्या का मामला राजनीति का हथियार बनते-बनते रह गया .

IMG 20220629 WA0087

सबसे पहले महाराष्ट्र चलिए. यहां मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा देकर मान लिया कि संख्या बल में दलबदलुओं या बागियों के मुकाबले कमजोर हैं. उनका न इमोशनल कार्ड चला और न नसीब काम आया ,लेकिन वे इस बात से सुखी जरूर होंगे कि एक बार वे शिवसेना को सत्ता के शीर्ष तक ले जाने में कामयाब रहे .वहां टिके नहीं रह सके ये अलग बात है .सत्ता में टिकना और संगठन को सम्हाले रखना दो अलग-अलग कलाएं हैं .उध्दव इस मामले में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की तरह बदनसीब निकले.

Fadnavis

महाराष्ट्र में अब भाजपा गा- बजाकर सत्तारूढ़ होगी ,सत्ता के सूत्र फडणवीस के हाथ होंगे क्योंकि भाजपा के पास कोई दूसरा नाम है ही नहीं भाजपा को अब सत्ता की लुटी-पिटी देह से शिवसेना के बागियों का हिस्सा उन्हें देना होगा अन्यथा किसी भी दिन वे दोबारा भाजपा का खेल खराब कर सकते हैं एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिव सैनिकों को अपनी कीमत का पता चल गया है .वे बिकाऊ हैं और बिकाऊ कभी भी भरोसेमंद नहीं होते .जनता ने जिन्हें जनादेश दिया था वे ये लोग नहीं थे .कुल जमा भाजपा को बधाई बनती है कि उसने राजस्थान और छत्तीसगढ़ न सही कम से कम महाराष्ट्र का गढ़ तो जीत लिया .

images 18

शिवसेना के हाथ से महाराष्ट्र की सत्ता जाने का गम एनसीपी और कांग्रेस को भी होगा लेकिन वे कर भी क्या सकते थे ? ये दोनों दल जो कर सकते थे सो कर चुके थे .ढाई साल भाजपा को सत्ता से दूर रखना ही इन दोनों दलों की उपलब्धि है. शिवसेना की पकड़ यदि ढीली न पड़ती तो सत्ता सुंदरी बाक़ी के ढाई साल और महाराष्ट्र अगाडी के साथ रह सकती थी .खैर जो हुआ ,सो हुआ .अब भाजपा जाने और बाग़ी शिवसैनिक जानें .जनता को अभी और इन्तजार करना पड़ेगा .

अब चलिए बिहार. बिहार में भाजपा बीते एक दशक से जेडीयू के कन्धों पर चढ़कर सत्ता का अंग बनी हुई है .इतने लम्बे समय में भाजपा यहां जेडीयू को लंगड़ा नहीं कर सकी.महाराष्ट्र में भाजपा का पाला जेडीयू के नीतीश कुमार से पड़ा है जो महाराष्ट्र के शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की तरह अनाड़ी नहीं है .नीतीश बाबू पुराने खिलाड़ी हैं और जानते हैं की भाजपा के मन में क्या है ? भाजपा अगर बिहार को महाराष्ट्र या मध्यप्रदेश बना पटी तो कभी का बना लेती ,लेकिन अभी तक उसे बिहार में पांव फैलाने का अवसर ही नहीं मिला है .

बिहार में विधानसभा चुनाव के समय भाजपा की मदद के लिए गए एईएमआईएम के औबेसी साहब ने पांच सीटों पर कब्जा कर अपनी दोस्ती निभा दी थी लेकिन औबेसी का खेल उनके विधायकों की समझ में आ गया और 5 में से 4 विधायक राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गए. कायदे से उन्हें सत्ता रूढ़ दल के घटक भाजपा या जेडीयू में जाना चाहिए था ,लेकिन नहीं गए,क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं की उनका भविष्य आरजेडी में ज्यादा सुरक्षित है .बिहार में आरजेडी ही भाजपा -जेडीयू गठबंधन का विकल्प है .औबेसी अब मध्य्रदेश में सक्रिय होकर भाजपा की मदद करना चाहते हैं ,लेकिन ऐसा शायद ही हो पाए .

bjp nupur sharma

सत्ता संघर्ष से अलग राजस्थान में नूपुर शर्मा के एक समर्थक की बर्बर हत्या का मामला भाजपा के लिए हथियार बनते-बनते रह गया,क्योंकि राजस्थान पुलिस ने हत्यारों को आनन-फानन में गिरफ्तार कर जेल पहुंचा दिया .उम्मीद की जाना चाहिए की आरोपियों को सजा भी बहुत जल्द मिलेगी .भाजपा राजस्थान में जनादेश हासिल करने में नाकाम रही है ,इसलिए पिछले दो-ढाई साल से लगातार पिछले दरवाजे से सत्ता में आने के रास्ते खोज रही है. भाजपा को राजस ठान में कोई बिभीषण नहीं मिल पाया है हालांकि भाजपा ने सचिन पायलट की पीठ पर हाथ रखा था ,लेकिन बात बनते-बनते रह गयी .भाजपा ने हार नहीं मानी है ,देखिये गुजरात और हिमाचल से फारिग होने के बाद राजस्थान में क्या होता है ?

अब चलते हैं बाजार की तरफ जहाँ लगातार डालर के मुकाबले में भारतीय रुपया लड़खड़ा रहा है . आजाद भारत में रूपये की इतनी दुर्दशा पहले कभी नहीं हुई.जब हुई थी तब आज की सत्तारूढ़ भाजपा ने इसे प्रधानमंत्री के इकबाल से जोड़ा था .मै ये गलती नहीं कर रहा. प्रधानमंत्री का इकबाल और रूपये की औकात का क्या रिश्ता भला ? रूपये की अपनी किस्मत है और प्रधानमंत्री जी का अपना नसीब. वे विश्व गुरु हैं और दुनिया में उनकी पूछ-परख लगातार बढ़ रही है ऐसे में रूपये की फ़िक्र किसे है ? रुपया गिरे या खड़ा रहे इससे कुछ नहीं होने वाला. प्रधानमंत्री जी को तो 2024 के आम चुनाव तक सीधे खड़ा रहना है .

डालर और रूपये से अलग एक मुद्दा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का है . भारत ने सोमवार को ही दुनिया के विकसित देशों के संगठन जी-7 के साथ ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी की ऑनलाइन और ऑफ़लाइन सुरक्षा और सिविल सोसायटी की आज़ादी की रक्षा’ करने के लिए एक समझौते पर दस्तख़त किए.लेकिन दूसरी तरफ दिल्ली में आईपीसी की धारा 153-ए (समाज में शत्रुता बढ़ाने) और 295-ए (धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर ठेस पहुंचाने) के आरोप में चार साल पहले दर्ज एक एफ़आईआर पर कार्रवाई करते हुए फ़ैक्ट चेकिंग साइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को गिरफ़्तार किया गया है.यानि हाथी के दांत दिखाने के और लेकिन खाने के और हैं .देश की जनता सम्भ्रम में है ,ये भयानक उलझा हुआ समय है,इसमने ये समझ पाना कठिन है कि आपको किस और जाना है ?

बहरहाल जो हो रहा है उस पर नजर रखिये क्योंकि जागरूक रहकर ही आप अपनी सुरक्षा कर सकते हैं .सरकार के पास आपकी सुरक्षा का समय नहीं है क्योंकि सरकार बेचारी खुद असुरक्षित है .वो अपनी कुर्सी बचने में लगी है .कोशिश की जिए कि आप भी सुरक्षित रहें और ये देश भी बचा रहे.