डरी हुई दुनिया में ‘हम लोग’

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दुनिया एक बार फिर दहशत में है. कोरोना के दंश का शिकार दुनिया अब निडर होकर जीना भूल चुकी है. ये जानते हुए भी कि -‘जहर ही जहर को काटता है ‘दुनिया कोरोना के नए अवतार ‘ओमीक्रान’ के आने से आतंकित है और फिर से बचाव में लग गयी है, लेकिन इस डरी हुई दुनिया में भारत के लोग बेपरवाह हैं .हम भारतीयों ने मौत से बचने के तमाम एहतियातों को बलाये ताक रखने की जैसे कसम खा ली है.

कोरोना से बीते सालों में 52 लाख से ज्यादा इनसानों की जान होम कर चुकी दुनिया एक बार फिर आतंकित है. इस आतंक का साया अब देश की संसद पर भी साफ़ दिखाई दे रहा है. देश की जो संसद कृषि कानूनों को बिना बहस पारित करने और वापस लेने में नहीं हिचकी उसी संसद में कोरोना पर बहस हो रही है .कोरोना से भारत में अब तक पांच लाख लोग मारे जा चुके हैं और अभी भी रोजाना 08 हजार नए मामले प्रकाश में आ रहे हैं.

कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रान पर बहस से पहले ही सरकार ने बता दिया है कि देश में मंगलवार को कोविड-19 टीकाकरण का आंकड़ा 124 करोड़ के पार पहुंच गया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, अब तक कोविड की 72 लाख से ज्यादा डोज लगाई गईं। कोरोना रोकथाम उपाय अब 31 दिसंबर तक प्रभावी रहेंगे, इसके साथ ही सरकार गंभीर मरीजों को बूस्टर डोज देने की तैयारी कर रही है। ये आंकड़े सरकार कि लिए संतोषजनक हो सकते हैं लेकिन देश की आबादी कि लिए नहीं.

कोरोना कोई लहर कमजोर पड़ते ही देश में एक और जहाँ कोरोना की जांच में शिथिलता आ गयी वहीं तमाम प्रतिबंध ढीले कर दिए गए. भीड़ फिर से उमड़ने लगी और कोरोना को नया चारा देकर ललचाने लगी है. मौत का वीभत्स चेहरा देख चुके हम लोग भगवान कि नाम पर एक साथ 51 हजार लोगों को ‘अन्नकूट’ खिलने में नहीं हिचकते. विवाह समारोहों में हजारों की भीड़ जुटाने में हमें डर नहीं लगता .हमारा डर मर चुका है, जबकि हकीकत ये है की कोरोना आज भी अमर है. नया चेहरा बदलकर प्रकट हो रहा है.

हमारे 33 कोटि देवताओं की कृपा है की अभी भारत में कोरोना कि नए संस्करण ओमीक्रान की हाजरी नहीं हुई है लेकिन ये कब तक भारत नहीं आएगा, कोई नहीं जानता .मध्यप्रदेश में भले ही कोरोना प्रतिबंध शिथिल कर दिए गए हों किन्तु नए कोरोना वायरस के मद्देनजर गुजरात सरकार ने मंगलवार को आठ प्रमुख शहरों में रात का कर्फ्यू 10 दिसंबर तक बढ़ा दिया है। हालाँकि कोरोना रात कि बजाय दिन में अपना काम ज्यादा करता है.

कोरोना की दोनों लहरों में हमारे इंतजाम नाकाफी साबित हुए हैं.हमारे पास पैसा था किन्तु चिकित्सा प्रबंध नहीं थे. हमारी आबादी दवाओं और आक्सीजन की कमी और बदइंतजामी की वजह से ज्यादा मारी गयी थी. हमने पुराने तजुर्बों से कितना सबक लिया है ये कहना मुमकिन नहीं है किन्तु हमारी सरकारों कि दावे जरूर हैं. ओमीक्रान भारत आये या न आये इससे हमारे प्रबन्धों में कोई ढील नहीं दी जाना चाहिए, अन्यथा परिणाम गंभीर हो सकते हैं.

कोरोना का नया अवतार जिस दक्षिण अफ्रीका में हुआ है वहां से हमारे एक चिकित्सक मित्र ने बताया है कि ओमीक्रान का पता सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका ने ही लगाया, दक्षिण अफ्रिका में कोरोना जाँच की जो प्रक्रिया अपनायी जा रही है उससे यदि भारत में भी जांच कराई जाये तो हकीकत सामने आ जाएगी. हमारे चिकित्सक मित्र का कहना है कि अब है हमारे दुश्मन की म्यावी प्रवृत्ति का पता चल चुका है, इसलिए अब डरने की नहीं बल्कि एहतियात बरतने कोई जरूरत है. यानि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी’.

हरियाणा और महाराष्ट्र में सरकारों ने पूर्व में घोषित अनेक प्रतिबंधों को दोबारा लागो कर दिया है. इन राज्यों में अब स्कूल फिलहाल बंद ही रहेंगे. खुले भी तो 15 दिसंबर के बाद स्थिति की समीक्षा के उपरान्त  कोरोना के नए स्वरूप ओमिक्रॉन से लड़ने के लिए सरकार ने मंगलवार को राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के साथ बैठक में जांच बढ़ाने, हॉटस्पाट की कड़ी निगरानी करने के निर्देश दिए। केंद्र सरकार और कर भी क्या कर सकती है? ओमीक्रान से बचने कि लिए सरकार से ज्यादा हम लोगों को करना होगा अन्यथा फिर मरघट धधक सकते हैं.

अच्छी बात ये है कि भारत बायोटेक के टीके कोवाक्सिन को 2 से 18 वर्ष आयुवर्ग पर आपात इस्तेमाल की मंजूरी के लिए कोविड विशेषज्ञ समिति की सिफारिश की जांच की जा रही है।  केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने कंपनी से अतिरिक्त जानकारी मांगी है। इसकी मंजूरी के बाद ही टीकाकरण शुरू हो सकता है. मैं तो कहता हूँ कि  वैज्ञानिकों को अब ऐसा टीका विकसित करना चाहिए जो बच्चों को वर्तमान में लगाए जा रहे टीकों कि रोस्टर का हिस्सा बनाया जा सके, अर्थात जन्म से लेकर एक वर्ष की आयु कि भीतर ही लगा दिया जाये.

कोरोना से सबसे ज्यादा मौतें अमेरिका में हुई थीं बावजूद अमेरिका में भी सतर्कता की स्थिति भारत जैसी ही है. वहां भी कोविड कि नियम पहले ही शिथिल किये जा चुके हैं. वेव से बचना है तो हमें अनुशासन में रहना सीखना ही होगा अन्यथा किसी भी आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता. ओमीक्रान पर बहस करने वाली भारतीय संसद को आप धन्यवाद दे सकते हैं, लेकिन ये बहस कृषि कानूनों को वापस लेते समय भी होती तो कितना अच्छा होता?