रेलों में रियायत पर रोक कब तक ?

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भारतीय रेलों में विभिन्न श्रेणियों में मिलनी वाली रियायत पर लगी रोक फिलहाल हटने की कोई संभावना नहीं है। कोरोनाकाल में बंद की गयी इस रोक से घाटे में चलने वाली भारतीय रेल को डूबने से बचाने की नाकाम कोशिश की जा रही है ,जबकि पिछले 75 साल में ऐसा कभी नहीं हुआ। रेलघाटे को कम करने के तमाम दूसरे रास्ते हैं लेकिन गाज गिरी है महिलाओं,बुजुर्गों,विकलांगों को मिलने वाली छूट पर।

आपको याद होगा कि भारत कि रेलों में में वरिष्ठ नागरिकों [सीनियर सिटीजन] को कोरोना के पहले टिकटों पर 50 फीसदी तक की रियायत मिलती थी. 60 से अधिक उम्र के पुरुष और 58 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को रेलवे में सीनियर सिटीजन की श्रेणी में रखा जाता है.

कोरोना काल से पहले तक राजधानी, शताब्दी, दूरंतो समेत सभी मेल एक्सप्रेस ट्रेनों में पुरुषों कोमूल किराये [ बेस फेयर] में 40 फीसदी और महिलाओं को मूल किराये [बेस फेयर] में 50 फीसदी की छूट दी जाती थी. रेल विकलांगों,कैंसर रोगियों,छात्रों ,स्वतंत्रता सेनानियों ,सांसदों,विधायकों,अधिमान्य पत्रकारों ,के अलावा अन्य दूसरी श्रेणियों में भी रेल किराये में रियायत देती थी।

रेल मंत्री के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-20 में किरायों में छूट से होने वाला नुकसान 2,059 करोड़ रुपये था और कोरोना महामारी के दौरान कई तरह की छूट निलंबित किए जाने से पिछले वित्त वर्ष में नुकसान घटकर 38 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.यानि रेल ने रियायतें बंद कर 2021 करोड़ रूपये बचा लिए। जबकि हमारे देश के प्रधानमंत्री की सालाना विदेश यात्राओं पर 500 करोड़ रूपये से अधिक खर्च हो जाता है।।

आंकड़े बताते हैं कि कोरोनाकाल से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 55 महीने के कार्यकाल के दौरान विदेशी दौरों पर हुए खर्च का ब्योरा देखा जाए तो मई 2014 से प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके अब के विदेश दौरे पर करीब 2 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुए हैं. मोदी की विदेश यात्रा के दौरान चार्टर्ड उड़ानों, विमानों के रखरखाव और हॉटलाइन सुविधाओ.पर कुल 2,021 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं.

रेलमंत्री ने संसद को बताया कि कोरोना महामारी के समय से रेलवे के टिकटों पर बंद रियायतों को फिलहाल शुरू करना संभव नहीं है। राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि इस सुविधा को बहाल करने के लिए उन्हें आवेदन मिले हैं।

महामारी और कोविड प्रोटोकॉल के मद्देनजर, यात्रियों की सभी श्रेणियों (दिव्यांगजन की 4 श्रेणियों, मरीजों और छात्रों की 11 श्रेणियों को छोड़कर) को सभी रियायत 20 मार्च 2020 से निलंबित हैं। ”2019-20 में एसी डिब्बों में यात्रा करने वाले यात्रियों में 4 फीसदी की वृद्धि हुई थी, जबकि 2020-21 में इसमें पिछले साल के मुकाबले 70 फीसदी की कमी दर्ज की गई।” रियायतें बंद होने के बावजूद , ”2019-20 और 2020-21 के दौरान एसी डिब्बों में क्रमश: 18.1 करोड़ और 4.9 करोड़ लोगों ने यात्रा की।”

ये हकीकत है कि रेल को कोविद काल में ३६ हजार करोड़ रूपये का घाटा हुआ था लेकिन इसे चाँद रियायतों को बंद कर तो पूरा नहीं किया जा सकता कहावत है कि मुर्दे की मूंछें उखाड़ने से उसका वजन कम नहीं होता यानि केवल। रियायतें बंद करने से रेल घाटे से नहीं उबर सकती ।

रेलवे को सबसे ज्यादा झटका यात्री राजस्व में लगा है। असल में तमाम ट्रेनों के लंबे समय तक बंद रहने से घाटा हो रहा है। पिछले साल रेलवे ने रियायतों के बावजूद यात्री राजस्व 53 हजार करोड़ रुपए अर्जित किया था, जबकि अभी तक यह महज 4600 करोड़ रुपए ही है। यह लगभग 86 फीसदी कम है।

हालांकि साल के अंत तक इसके 15000 करोड़ रुपए तक होने का अनुमान है तब भी यह बीते साल की तुलना में 28 से 29 फीसद ही हो पाएगा और लगभग 70 फीसद का घाटा रहेगा। रेलवे को इस साल के घाटे की भरपाई करने में कम से कम दो साल लग सकते हैं। अगले साल रेलवे को बहुत सारी रिक्तियों को भरना है और लोगों को रोजगार भी देना है। ऐसे में उस पर दबाव और बढ़ेगा। यानि देश के बुजुर्गों तथा अन्य श्रेणी के लोगों को अगले दो साल तक रियायतों की उम्मीद नहीं करना चाहिए।

भारत जैसे देश में रेलने अर्थव्यवस्था का ही नहीं समाजिक संरचना की मजबूती का एक आधार रहीं है। भारतीय रेलों में वातानुकूलित डिब्बों को छोड़कर अधिकांश डिब्बे कैटल क्लास के होते हैं यानि उनमने सवारियां भेद-बकरियों की तरह ठूंसकर भरी होती हैं। देश की सरकार एक तरफ घाटे का रोना रो रही है दूसरी तरफ बुनियादी सुविधाएं बढ़ाने के बजाय विश्व स्तर के रेल स्टेशन बनाने में जुटी है। क्या ये सब रियायतों पर खर्च होने वाले दो -ढाई हजार करोड़ रूपये बचाकर ही होगा ?क्या रेल फिजूलखर्ची के दूसरे मद बंद कर इसकी भरपाई नहीं कर सकती ?

भारत सरकार एक तरफ देश में हवाई यातायात बढ़ाने में प्राण-पण से लगी है दूसरी तरफ उसे रेल सुविधाएं बढ़ाने की उतनी फ़िक्र नहीं ह। देश में रेल यात्रा महंगी होने की वजह से सामाजिक संरचना पर बुरा असर पड़ा है । पर्यटन कम हुआ है। अतीत में अनेक राज्यों ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए निशुल्क तीर्थ यात्राएं करने की योजनाए चलाई थीं ,कोरोनाकाल में ये भी बंद हो गयीं ,लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं इन्हें दोबारा शुरू करने की योजनाएं बन रहीं हैं। जाहिर है कि इस देश में जो होता है वोट के लिए होता है। हकीकत से उसका कुछ लेना-देना नहीं है।

सरकार ने पिछले दिनों पेट्रोल-डीजल के डैम कम करने के लिए कदम उठाये ,क्या इसका देश के बजट पर असर नहीं पड़ा ?सरकार को जब लगेगा कि रेल की रियायतें वोट के लिए जरूरी हैं तब मुमकिन है कि इन्हें भी बहाल कर दिया जायेगा ,लेकिन तब तक वरिष्ठजन और पत्रकार अपने घर बैठे।

रेल की रियायतें उनके लिए उपलब्ध नहीं हैं। विसंगति देखिये एक तरफ रेल रियायतें बंद हैं वही हवाई यात्रा में वरिष्ठ नागरिकों को रियायत देने की घोषणा नागरिक विमानन मंत्री कर रहे हैं ,जबकि अब कोई हवाई सेवा शासकीय नहीं है। यानि सवाल नीयत का है। रेलवे चाहे तो अकेले प्लेटफार्म टिकिट बेचकर ही रियायतों की वजह से होने वाले कथित घाटे को पूरा कर सकती है ,लेकिन करती नहीं है ,जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में रेलवे ने प्लेटफॉर्म टिकट से 160.87 करोड़ रुपए की कमाई की थी। यह कमाई पिछले 5 सालों में इस सेगमेंट में सबसे ज्यादा थी।

सरकार जानती है कि रेल यात्रा में रियायतें पाने वाले लोग संगठित नहीं हैं,धरना-प्रदर्शन नहीं कर सकते इसलिए जब तक चाहो रियायतें बंद रखो और जब वोट लेने का समय आये तब उन्हें बहाल कर दो। आप देखते रहिये कि भविष्य में ऐसा ही होगा। लेकिन ये तरीका गलत है तो है। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहि।