Saving Spinal Chords of New Generation: ऐसे मिली मासूम बच्चों के कंधों को भारी बस्तों से मुक्ति

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Saving Spinal Chords of New Generation: ऐसे मिली मासूम बच्चों के कंधों को भारी बस्तों से मुक्ति

भारतीय राष्ट्र राज्य क़ानून बनाने में जितना फुर्तीला है उनके पालन में उतना ही ढीला है। हम जितनी तत्परता से क़ानून बनाते हैं उससे दोगुनी तत्परता से उसका उल्लंघन करते हैं। यही हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। नन्हे नन्हे बच्चों को भारी भारी बस्ते अपनी पीठ पर ढोते देखकर सब को कष्ट होता है।

ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थी तो नदी नाला पहाड़ चढ़कर दुर्गम रास्तों को पार कर अपने विद्यालयों तक पंहुचते हैं। उनके कष्ट का आप अनुमान लगा सकते हैं।

मीलों तक भारी बस्तों का बोझ शिशुओं और किशोरों के मेरुदंडों ही नहीं उनके कंधों और स्नायु तंत्र को भी क्षति पंहुचा रहा है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के विशेषज्ञों ने वर्षों पूर्व एक राष्ट्रीय स्कूल बैग पालिसी बनाई है जो पता नहीं कौन सा कंबल ओढ़कर कहाँ सो रही है।

आयुक्त शहडोल संभाग के तौर पर मैंने इस राष्ट्रीय बस्ता नीति को इसके बस्ते से निकाला और अपने कलक्टरों ,सीईओ ज़िला पंचायतों ,शिक्षकों से चर्चा की। प्रत्येक ज़िले में विभिन्न कक्षाओं के स्कूली बस्तों को तौला गया तो पाया ज़्यादातर विद्यार्थी नियत मानदंड से दुगुना तिगुना बोझ ढो रहे थे।हमारी टीम ने सभी विद्यालय

संचालकों ,शिक्षा अधिकारियों और शिक्षकों की सहभागिता से एक सप्ताह में अपने मासूम बच्चों के कंधों को भारी बस्तों से मुक्ति दिला दी .

संभाग के इस प्रयास को समाचार माध्यमों ने सराहा .राज्य सरकार ने भी स्कूल बस्ता नीति के पालन के निर्देश पुनः जारी किये .अब वे निर्देश भी अपनी मूल नीति की तरह किसी कंबल में जाकर सो गये हैं।