

Silver Screen: सच को परदे पर छलने की नई तकनीक यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
– हेमंत पाल
फिल्म निर्माण बेहद पेचीदा और श्रमसाध्य काम है। वास्तव में तो ये कोई काम नहीं, एक जुनून है। जिसे इसकी धुन लग जाती है, वो सब कुछ छोड़कर इसमें खो सा जाता है। यह जानते हुए कि फिल्म का भविष्य दर्शकों की पसंद और नापसंद पर टिका होता है। हिंदी फिल्मों के सौ साल से ज्यादा लंबे इतिहास में ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जब फिल्मकारों ने अपनी सारी प्रतिभा किसी एक फिल्म के लिए झोंक दी, फिर भी नतीजा मनमाफिक नहीं रहा। समय बीता और उसके साथ बहुत कुछ बदला। फिल्म निर्माण की तकनीक में भी सुधार आया। पर, ये वो काम है, जो तकनीक समृद्धता से ज्यादा बौद्धिक क्षमता पर निर्भर है। ऐसी बौद्धिकता जो दर्शकों को प्रभावित करे और उन्हें ढाई-तीन घंटे तक सीट पर बांधकर रखे। क्योंकि, जरूरी नहीं कि तकनीकी समृद्धता से दर्शक आकर्षित हों। बात बस इतनी सी है, कि जो फिल्म देखने वाले प्रभावित करे वही सफल फिल्म मानी जाती है। फिल्म इंडस्ट्री में राज कपूर और सुभाष घई जैसे बड़े शोमेन हुए, पर श्याम बेनेगल और महेश भट्ट को पसंद करने वाले भी कम नहीं हैं। क्योंकि, दर्शकों बांधकर रखने की दक्षता उनमें भी रही।
इस बात से इंकार नहीं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी ‘एआई’ ने फिल्म उद्योग को कई तरह से बदल दिया। आश्चर्यजनक है कि इस तकनीक ने फिल्म उद्योग को वहां भी बदला, जहां इससे कुछ नया होने की उम्मीद नहीं की जा रही थी। तात्पर्य यह कि फिल्म निर्माण प्रक्रिया का लगभग हर पहलू इस तकनीक से प्रभावित होने लगा। संपादन और रिकॉर्डिंग सॉफ्टवेयर, फॉर-के और 3-डी मूवी तकनीक, ड्रोन और एआई आधारित पटकथा लेखन टूल से भी फिल्म निर्माण प्रक्रिया पर असर पड़ा। इसके जरिए दृश्य तकनीक और फिल्म देखने के अनुभव, बेहतर ध्वनि प्रभाव, नए स्क्रीनिंग इंटरफ़ेस, आधुनिक संपादन उपकरण पहले कभी न देखे गए अनुभव दर्शाते हैं। साफ़ शब्दों में कहा जाए, तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रयोग के बाद फिल्म उद्योग में नए प्रयोगों का दरवाजा खुल गया। साथ ही यह फिल्म निर्माण की दुनिया के लिए यह क्रांतिकारी कदम रहा। ‘एआई’ में फिल्म निर्माण प्रक्रिया को हर तरह से व्यवस्थित किया है, जिससे इस कारोबार की संचालन दक्षता बढ़ाने, श्रम लागत कम करने और अधिक कमाई करने में सक्षम बनाया जा सके।
फिल्म निर्माण की तकनीक में साल दर साल बदलाव आता रहा। तकनीक के साथ फिल्मकारों के साथ दर्शकों की सोच भी बदली। लेकिन, हाल के बरसों में जो क्रांतिकारी बदलाव देखने में आया, वो है कृत्रिम बौद्धिकता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का फिल्म निर्माण में उपयोग। फिल्म की कहानी के विस्तार से लगाकर हर मामले में ‘एआई’ का दखल बढ़ा है। फिल्में और ‘एआई’ का संयोजन इस दिशा में एक नए युग की शुरुआत है। अब तो ‘एआई’ की मदद से हिंदी फिल्में अधिक प्रभावी ढंग से बनाए जाने की कोशिश होने लगी।
सबसे ज्यादा काम पटकथा लेखन जैसे मामले में होने लगा, जो कि फिल्म निर्माण की रीढ़ होता है। ‘एआई’ से पटकथा लेखन को अधिक प्रभावी बनाने के साथ नई कहानियों के प्लाट भी गढ़े जाने लगे। इससे यह भी अंदाजा होने लगा कि पटकथा का ये आइडिया दर्शकों की पसंद पर खरा उतरेगा या नहीं! अब तो ‘एआई’ की मदद से कैरेक्टर डेवलप करना भी आसान होने लगा। वास्तविक और आकर्षक कैरेक्टर को गढ़ने में भी ‘एआई’ की मदद ली जाने लगी, जो कल्पनाशीलता से परे हैं। बाहुबली, रा-वन और ‘कृष’ जैसी हिंदी फिल्मों में ऐसे कैरेक्टर्स दिखाई दिए, जिन्हें आसानी से गढ़ना और उनका फिल्मांकन आसान नहीं है। जबकि, हॉलीवुड की फिल्मों में ऐसे कैरेक्टरों की दशकों से भरमार है।
‘एआई’ का उपयोग किसी फिल्म की स्क्रिप्ट का विश्लेषण करने के लिए भी किया जा सकता है, ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि फिल्म दर्शकों को पसंद आने के साथ और बॉक्स ऑफिस पर फायदेमंद होगी या नहीं। हालांकि, एल्गोरिदम भविष्यवाणियां पूरी तरह से सटीक साबित नहीं हो सकती। उदाहरण के लिए, वार्नर ब्रदर्स ने अपनी फिल्मों की सफलता और बॉक्स ऑफिस की भविष्यवाणी करने के लिए सिनेलिटिक एआई-आधारित प्लेटफार्म की की तरफ रुख किया है। 20वीं सेंचुरी फॉक्स ने मर्लिन प्रणाली को एकीकृत किया, जो फिल्मों को विशेष शैलियों और दर्शकों से मिलाने के लिए ‘एआई’ और मशीन लर्निंग का उपयोग करता है। साथ ही किसी भी फिल्म के लिए सारे आंकड़े उपलब्ध कराता है। स्क्रिप्ट बुक एक अन्य एआई-आधारित प्रणाली है, जो फिल्म को लेकर भविष्यवाणी करती है। इसका उपयोग सोनी पिक्चर्स अपनी 62 फिल्मों का विश्लेषण करने के लिए कर चुका है।
प्री-प्रोडक्शन में भी ‘एआई’ का उपयोग किया जाने लगा है। इसकी मदद से शेड्यूल बनाने, कहानी के लिए उपयुक्त शूटिंग स्थल की खोज भी संभव है। इसके अलावा ‘एआई’ में निर्माण प्रक्रियाओं में सहायता और प्री-प्रोडक्शन प्रक्रिया को सरल बनाने की काफी क्षमता है। ‘एआई’ को लागू करने से अभिनेताओं की उपलब्धता के अनुसार शूटिंग शेड्यूल की योजना स्वचलित हो सकेगी। इससे समय की बचत होगी और दक्षता में वृद्धि आएगी। इसके साथ ही एआई सिस्टम पटकथा में उल्लेखित स्थानों का विश्लेषण भी कर सकता है। शूटिंग के लिए वास्तविक साइटों की जानकारी दे सकता है। आशय यह कि फिल्मकार का निर्माण संबंधी अनावश्यक खर्च बचने लगा।
हॉलीवुड फिल्मों के बाद हिंदी फिल्मों में भी ‘एआई’ का उपयोग बढ़ता जा रहा है। कई फिल्मों में इसका प्रभावी उपयोग किया भी गया। पिछले डेढ़ दशकों में ऐसी कई फ़िल्में आई जिनमे कहीं न कहीं एआई तकनीक का असर दिखाई दिया। ‘एआई’ का उपयोग फिल्मों में लगातार बढ़ता जा रहा है, और भविष्य में इसका उपयोग और भी अधिक होने की संभावना है। ‘रोबोट’ (2010) फिल्म में एआई से रोबोट का चरित्र गढ़ा गया। ‘रा वन’ (2011) में भी एआई से विजुअल इफेक्ट्स और रोबोट का चरित्र को बनाया। ‘कृष-3’ (2013) में एआई से विजुअल इफेक्ट्स और सुपर हीरो के चरित्र बनाया था। ‘बाहुबली’ (2015) में एआई से विजुअल इफेक्ट्स और एनिमेशन किया गया। फिल्म ‘2.0’ (2018) में एआई से विजुअल इफेक्ट्स और रोबोट का किरदार बनाया गया। इस फ़िल्म में एआई का उपयोग सबसे ज्यादा किया गया था। ‘मिशन मंगल’ (2019) में एआई से स्पेस मिशन के दृश्यों को प्रभावी बनाया गया। ‘विक्रम वेधा’ (2022) में एआई से विजुअल इफेक्ट्स और एनिमेशन के लिए किया गया था।
हिंदी फिल्मों में एआई का सबसे ज्यादा उपयोग ‘2.0’ फ़िल्म (2018) में हुआ। यह फिल्म रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित थी। इसमें एआई का उपयोग विजुअल इफेक्ट्स, रोबोट के चरित्र को बनाने और फिल्म के संगीत और ध्वनि डिजाइन में किया गया था। ‘2.0’ फिल्म में एआई का उपयोग करने के लिए फिल्म के निर्देशक एस शंकर ने कई एआई टूल्स और तकनीकों का उपयोग किया था। फ़िल्म में विजुअल इफेक्ट्स के लिए एआई का उपयोग किया था, जिससे रोबोट के चरित्र को अधिक वास्तविक और आकर्षक बनाया जा सके। फिल्म में फेस रिकग्निशन तकनीक का भी उपयोग किया गया, जिसमें रोबोट के चरित्र को पहचानने और उसके चेहरे के भावों को समझने में काफी हद तक मदद मिली। फिल्म में मोशन कैप्चर तकनीक का उपयोग भी किया गया था, जिससे रोबोट के चरित्र की गतिविधियों को अधिक वास्तविक और आकर्षक बनाया जा सके। फिल्म में संगीत और ध्वनि डिजाइन के लिए एआई का भी उपयोग हुआ था, जिससे फिल्म के संगीत और ध्वनि को अधिक प्रभावी और आकर्षक बनाया जा सके। इन एआई तकनीकों का उपयोग करके ‘2.0’ फिल्म के निर्देशक एस शंकर ने एक ऐसी फिल्म बनाई, जो न केवल दर्शकों को आकर्षित करती है, बल्कि एआई की क्षमताओं को भी प्रदर्शित करती है।
एआई से हिंदी फिल्मों में कई फायदे के साथ चुनौतियां भी हैं। ‘एआई’ के उपयोग से हिंदी फिल्मों में अधिक प्रभावी ढंग से काम किया जा सकता है। लेकिन, इसके साथ रचनात्मकता और गुणवत्ता की कमी का ध्यान रखना भी आवश्यक है। अभी ये शुरुआती दौर है। समय के साथ ‘एआई’ का उपयोग बढ़ेगा और फिल्म निर्माण का काम आसान होता जाएगा। तब पूरी फिल्म एक कमरे में बैठकर बना ली जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए! क्योंकि, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से वो सब कुछ संभव है, जिसे अभी तक नामुमकिन समझा जा रहा था।