Childhood: बचपन पर नया संकट है बदलता मौसम

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Childhood: बचपन पर नया संकट है बदलता मौसम

Childhood: बचपन पर नया संकट है बदलता मौसम

आज हम एक ऐसे दौर में पहुँच गए हैं, जहां जलवायु परिवर्तन एक गम्भीर समस्या बनती जा रही है। इसकी परिणीति हम सबके सामने है। जलवायु परिवर्तन के लिए बच्चे सबसे कम ज़िम्मेदार हैं, पर वे ही इसका सबसे अधिक कुप्रभाव झेल रहें हैं। आने वाले दिनों में ये स्थिति और बिगड़ेगी।
अफ़सोस कि हमारे देश में जलवायु परिवर्तन को  गंभीरता से नहीं लिया जाता। यही वजह है कि हमारे यहां अब तक जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित कोई कानून नहीं बनाया गया। इस बात से सहज ही आकलन किया जा सकता है कि इतने गंभीर मुद्दे पर हमारे देश के नीति-नियंता किस तरह चैन की बंशी बजा रहे हैं। यूं तो हमारे देश की राजनीति में कई उतार चढ़ाव आए, लेकिन जलवायु परिवर्तन कभी कोई मुद्दा नहीं बना! राजनीति की विडम्बना है कि वह आज भी जाति और धर्म के फेर में उलझी है।
Childhood: बचपन पर नया संकट है बदलता मौसम
   राजनेताओं के लिए पर्यावरण संकट कभी चिंता का विषय नहीं बना। शायद इसलिए भी जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकट समय के साथ विकराल हो गया। जलवायु परिवर्तन ने न केवल हमारे वर्तमान, बल्कि आने वाले भविष्य को भी संकट में डाल दिया। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान तेजी से बढ़ रहा है। जिससे मां की कोख में पल रहा बच्चा तक सुरक्षित नहीं। आज पूरे विश्व में बढ़ते तापमान के चलते समय-पूर्व बच्चों के जन्म का ख़तरा कई गुना बढ़ गया। हाल के अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह दावा किया कि तापमान के बढ़ने से न केवल नवजात शिशुओं, बल्कि भ्रूण में पल रहे बच्चे तक के प्राण संकट में है।
प्रो ग्रेगरी वेलेनियस और प्रो एजेतियाँ वेंसीलिक का कहना है कि तेजी से बढ़ रही गर्मी, तूफ़ान और जंगलों की आग से निकलते धुंए से न केवल समय-पूर्व जन्म का ख़तरा बढ़ा है, बल्कि बच्चों में स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो रही है। एक आंकड़े की बात करें तो 10 लाख अमेरिकी गर्भवती महिलाओं पर किए अध्ययन से यह पता चला है कि समय से पहले जन्म के 16% मामले उन क्षेत्रों के है जहां गर्मी अधिक थी।
वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों में भी यह बात कही गई कि हर साल करीब 1.5 करोड़ बच्चे समय से पहले ही जन्म ले लेते है। वहीं 2 करोड़ नवजात बच्चों का वजन जन्म के समय सामान्य से कम रहता है। ऐसे में यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि मानव के बढ़ते लालच ने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है और अब जिसका दुष्परिणाम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
   आज देश मे कुपोषण चरम पर है। ऐसे में बढ़ता जलवायु संकट कुपोषण की समस्या को और कई गुना बढ़ा देगा, जिसका सबसे ज्यादा असर बच्चों के स्वास्थ्य पर होगा। कहते हैं कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं, जब वही गम्भीर बीमारियों का सामना करने को मजबूर होंगे, तो देश का विकास संभव नहीं हो सकेगा। ऐसे में कितने आश्चर्य की बात है, कि बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली जैसे शहरों में ऑक्सीजन बार खोले जा रहे है।
यहां लोग पैसे देकर प्रदूषण रहित आक्सीजन ले रहे हैं। कोरोना के भयावह दौर में ऑक्सीजन की किल्लत से बेवजह हुई मौतों को भूलना किसी के लिए भी संभव नहीं। इतना ही नहीं बढ़ते प्रदूषण से अभी भी सबक नहीं लिया, तो वह दिन दूर नहीं जब मानव साफ हवा के लिए तरस जाएगा। वायु प्रदूषण एक गम्भीर समस्या है। जिससे भारत में प्रतिवर्ष 16 लाख से ज्यादा लोग मौत के आगोश में समा जाते है। बिडम्बना देखिए कि अमीरों की गाड़ी से निकलने वाले धुंए से सबसे ज्यादा प्रभावित सड़क किनारे फुटपाथ पर रेहड़ी लगाने वाले गरीब मजदूरों को चुकानी पड़ती है।
जबकि, अमीरों के घरों में हवा साफ़ करने के लिए प्यूरीफायर जैसे उपकरण लगे होते हैं। एक अच्छी कहावत है कि करें कोई और भरे कोई!  वास्तव में आज के दौर में हो भी यही रहा है। बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण उपजा जलवायु संकट भी कहीं न कहीं अमीरों की ही देन है, जिसकी सज़ा अब मासूम और शोषित वर्ग को चुकानी पड़ रही है।
हाल ही में यूनिसेफ ने भी बढ़ते जलवायु संकट पर चिंता व्यक्त की है। यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया कि दुनिया के करीब एक अरब से ज्यादा बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का ख़तरा मंडरा रहा है। जिसमें भारत, पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों पर जलवायु संकट का अधिक खतरा होने की बात कही गई है।
यूनिसेफ द्वारा क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स भी जारी किया गया। जिसमें बाढ़, लू, चक्रवात और वायु प्रदूषण को शामिल किया गया। ऐसे में यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रगतिशील दौर में बच्चे जहां गंभीर बीमारियों का सामना कर रहें हैं, तो वही दूसरी तरफ़ कोरोना का बढ़ता ख़तरा बच्चों से उनका बचपन छीन रहा है। आज बच्चे डर के माहौल में जीने को मजबूर है।
जिसका सीधा असर न केवल उनके शरीर पर बल्कि मन पर भी पड़ रहा है। यही वजह है कि वर्तमान दौर में बच्चे मानिसक अवसाद और मोटापे के शिकार हो रहे है। इसके अलावा रही सही कसर जलवायु परिवर्तन पूरा कर ही रहा है।
   कुल-मिलाकर देखें तो आज बचपन दो तरफा मुसीबतों से घिरा हुआ है। यही बचपन अगर आगामी भविष्य का आधार है। फिर उसी आधार को कमज़ोर करके क्या हम अपने देश को शिथिल और अवनति की और ले जाना चाहते हैं। इस पर हमें जल्द विचार करना होगा, वरना काफी देर हो चुकी होगी। वैसे मालूम हो कि यूनिसेफ ने भी इस बात को समझ लिया है कि वैश्विक स्तर पर बच्चें जलवायु परिवर्तन की भयंकर चपेट में हैं।
तभी उसका कहना है कि अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो जलवायु परिवर्तन से दुनिया के बच्चों द्वारा पहले से झेली जा रही असमानता और बढ़ जाएगी और आने वाली पीढियां भी इससे प्रभावित होंगीं। ऐसे में वक्त की नज़ाकत देश की रहनुमाई व्यवस्थाओं को भी समझना होगा। नहीं तो वादों और दावों से हकीकत नहीं बदलती और सस्टेनेबल डेवलेपमेंट के 17 सूचकांक जिनमें जलवायु परिवर्तन आदि विषय शामिल। उसमें हमारी क्या स्थितियां, उससे वाकिफ़ हर कोई है।
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सोनम लववंशी

पत्रकारिता में स्नातकोत्तर होने के साथ महिलाओं और सामाजिक मुद्दों की बेबाक लेखिका है। उन्होंने पत्रकारिता के कई संस्थानों में कार्य किया है।