इस मुलाकात को क्या नाम दिया जाए, आनंद बताएंगे या नड्डा!
हिन्दी फिल्म ‘महल’ का एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था ‘ये दुनिया वाले पूछेंगे, मुलाकात हुई, क्या बात हुई, ये बात किसी से ना कहना!’ इस गीत फिल्म की पृष्ठभूमि और आज की एक राजनीतिक घटना की पृष्ठभूमि में बहुत कुछ साम्यता है। जिस फिल्म का यह गीत है उसके नायक (देव) आनंद हैं और जिस राजनेता से यह घटना संबंध रखती है वह भी आनंद (शर्मा) ही हैं। मुलाकात हुई क्या बात हुई गीत का फिल्मांकन हिमाचल प्रदेश की वादियों में हुआ था और आनंद शर्मा की भाजपा अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा से मुलाकात और बात भी हिमाचल प्रदेश की वादियों से ही संबंधित है।
कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मुलाकात के कई राजनीतिक कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन, इसके क्या परिणाम होगा कोई नहीं जानता क्योंकि क्रिकेट की तरह राजनीति में भी कभी भी कहीं भी कुछ भी हो सकता है। आनंद शर्मा कांग्रेस के पुराने सिपाहसालार हैं जो युवक कांग्रेस से लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य तक रह चुके हैं। गांधी परिवार में उन्हें विश्वसनीय माना जाता रहा है। लेकिन, जिस तरह से कांग्रेस में पुराने लोगों को हाशिए पर रखने का सिलसिला जारी है उससे इस पारस्परिक विष्वास में दरार दिखाई देने लगी है जिसे आनंद शर्मा कई बार सार्वजनिक कर चुके हैं। कांग्रेस के आहत 23 सदस्यों (जी-23) की सूची में वरीयता प्राप्त आनंद शर्मा इस बार राज्यसभा में नामित न किए जाने पर भी आहत हैं। पार्टी में अपना अस्तित्व धुंधलाता देख अपने राजनीतिक वर्चस्व को कायम रखने के लिए कुलबुला रहे हैं। चर्चा है कि इसी छटपटाहत के परिणामस्वरूप उन्होंने पिछले दिनों भाजपा के अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा से मुलाकात कर ठहरे हुए पानी में कंकर फेंकने का काम किया है।
इस राजनीतिक मुलाकात के बाद आनंद शर्मा के बीजेपी में जाने की अटकलें तेज हो गईं। हालांकि वह इस बारे में मुलाकात हुई क्या बात हुई पर ज्यादा बोल नहीं रहे हैं, अलबत्ता पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल पर उन्होंने इस तरह की अटकलों को सरसरी तौर पर खारिज करने का काम किया है। उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि यदि उन्हें ऐसा करना होगा, तो वे खुलेआम करेंगे। क्योंकि, नड्डा और वे एक ही स्थान हिमाचल प्रदेश की पृष्ठभूमि से जुड़े हैं और दोनों ने एक ही विश्वविद्यालय में पढ़ाई की है। उन्होंने यह भी साफ किया कि उनका नड्डा से पुराना सामाजिक और पारिवारिक नाता है। लेकिन, वे यह कहने से भी नहीं चूके कि उन्हें खुशी है कि उनके राज्य और विश्वविद्यालय से आने वाला कोई व्यक्ति सत्तारूढ़ दल का अध्यक्ष है।
अपनी वाकपटुता का परिचय देते हुए आनंद शर्मा ने इस मुलाकात को औपचारिक भेंट से ज्यादा कुछ नहीं बताया। उनका कहना है कि वैचारिक मतभेद का मतलब व्यक्तिगत दुश्मनी या वैमनस्य नहीं होता। बार-बार पूछे जाने पर आनंद शर्मा यह कहने को मजबूर हुए कि यदि उन्हें जेपी नड्डा से मिलना होगा तो इसमें न तो कोई हर्ज है और न इसके पीछे कोई छिपा हुआ एजेंडा ही है। चर्चित मुलाकात के बारे में उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय पूर्व छात्र संघ ने उन्हें और नड्डा को सम्मानित करने के लिए आमंत्रण भेजा है। इसी सिलसिले में उन्होंने फोन पर नड्डा से बातचीत की। व्यक्तिगत मुलाकात पर वे खुलकर कुछ नहीं बोल रहे! हालांकि, पहले भी उनके और जेपी नड्डा की बातें राजनीतिक गलियारों में होती रही है।
अब तक होता यह आया है कि जितनी बार आनंद शर्मा और जयप्रकाश नड्डा की मुलाकात की बात सामने आती है आनंद शर्मा के भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज होने लगती हैं। हर बार की तरह उन्हें इस बार भी इन अटकलों को खारिज करना पड़ा। लेकिन, इस बार राजनीतिक पंडितों का अनुमान है कि साल के अंत तक हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव कराए जाने की संभावना है। जिसके चलते भाजपा राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहे या न चाहे, लेकिन कांग्रेस की स्थिति जरूर कमजोर करना चाहती है। ऐसे में यदि वह आनंद शर्मा को भगवा गमछा पहनाने में सफल हो जाती है तो राज्य में कांग्रेस की इमारत में सेंध जरूर लगाई जा सकती है।
देखा जाए तो जिस कांग्रेस ने आनंद शर्मा को अब अनुपयोगी मानते हुए हाशिए पर बिठा दिया, वे भाजपा के लिए कितना लाभकारी साबित होंगे कहा नहीं जा सकता। यदि भाजपा की नीति पर गौर किया जाए तो 5 जनवरी 1953 को जन्मे आनंद शर्मा उम्र के 70वें बसंत में प्रवेश कर चुके है। यह वह उम्र है जिसमें भाजपा अपने सदस्यों का सक्रिय राजनीतिक सफर जारी करने पर ब्रेक लगाती आई है। ऐसे में यह तो लगभग असंभव लगता है कि यदि आनंद शर्मा भाजपा में आए तो उन्हें हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद तश्तरी में रखकर पेश कर दिया जाएगा। राज्यसभा और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भी उनके लिए अवसर धुंधले ही हैं।
ऐसी स्थिति में ले देकर कांग्रेस से अपमानित आनंद शर्मा को सम्मानित करने के लिए भाजपा के लिए एक ही उपहार बचता है कि कांग्रेस से आहत आनंद शर्मा को राहत पहुंचाने के लिए वे गोवा से आए राजेन्द्र आर्लेकर की जगह उन्हें हिमाचल प्रदेश का आगामी प्रथम पुरुष अर्थात राज्यपाल बनाकर उनके राजनीतिक पडाव की संध्या को आनंदमय बना दें। लेकिन, फिलहाल तो इसे राजनीतिक अटकल ही मानना ज्यादा उचित होगा क्योंकि आनंद शर्मा और जयप्रकाश नड्डा की मुलाकात हुई, क्या बात हुई कोई नहीं जानता!