अपनी भाषा अपना विज्ञान:रत्न: विज्ञान और मिथ्याविज्ञान
अनादिकाल से रत्न (हीरे, जवाहरात), सोना, चांदी अनेक कहानियां कहते रहे हैं । इनसे जुड़ा एक और पुराना इतिहास है। मानव इतिहास से भी पुराना। धरती पर इन्सान के अवतरण से करोड़ों वर्ष पुराना। पृथ्वी के उदर में उपलपुथल की कहानी, जिसमें तप कर, पक कर, दब कर, टूट कर, जुड़ कर नाना प्रकार के रत्न बनते रहे ।
रत्न क्या है? पत्थरों के प्रकार । खनिजों के प्रकार । कुछ बहुत मूल्यवान। कुछ कम | Precious stones. Semi-precious stones I बाकी सब महज कंकर ।
ये पत्थर और ये धातुएँ (सोना, चांदी), मूल्यवान क्यों कहलाये ? इन्सान की सनक ।
वरना इनकी क्या उपयोगिता?
किसी मशीन या जरूरी वस्तु या भोजन-पोषण या औषधि में काम आ रहे होते तो समझ में आता । आते हैं थोड़े बहुत, ज्यादा नहीं। सजावट में सुन्दर दिखने के लिये ? वह काम तो नकली रत्न या सोने का पानी चढ़ा कर भी हो सकता है ।
मनुष्य की इस सनक की सायकोलाजी और उसके इतिहास पर नजर डालना इस निबन्ध का उद्देश्य नहीं है।
यहां कुछ चर्चा इनकी Geology (भूविज्ञान) की और कुछ इनके साथ जुड़े हुए Pseudo-Science [मिथ्या विज्ञान] की कर रहा हूँ।
भूविज्ञान
धरती के गर्भ में गरम मेग्मा उबलता रहता है। कभी-कभी बाहर आता है। जबकि धरती की सतह पर मोटी-मोटी ठोस परतों के टुकड़े, जमे रहते है । जिग-सा-पज़ल के रूप में । इन्हे Tectonic Plates कहते है । इन प्लेट्स के नीचे गाढ़ा गर्म मेग्मा रहता है । परते तैरती रहती है । बहुत धीमी एक गति से सरकती है ।
इन प्लेट्स के बीच गेप होते है जिनमें पानी से भरे सागर रहते है। Tectonic Plates दूर हट कर छिटकती है या पास आकर हौले से टकराती हैं ओर धीरे-धीरे हिमालय जैसे पहाड़ बनाती है ।
मिट्टी, रेत, चट्टानें दबती हैं, तपती है, ठण्डी होती है, मथी जाती हैं, पीसी जाती हैं उबलती है, जमती हैं । इनके अवयव आपस में रासायनिक क्रियाएं करते हैं । नाना प्रकार के खनिज [Minerals] जन्म लेते हैं । कुछ की संक्षिप्त चर्चा यहां है ।
Peridot-[पेरीडाट] [मनी-स्टोन]
“पन्ना” जाति का एक उप-रत्न ।
पश्चिमी एशिया में लाल सागर में एक छोटा सा द्वीप है – जबरगाद।
दुनिया के सबसे बेहतरीन पन्ना (पेरीडाट) का खनन यहां 3500 वर्षों से होता आया है। प्राचीन मिस्त्र देश के फराहो सम्राट इन्हें धारण करते थे । यह द्वीप लगभग तीन करोड़ वर्ष पहले बता था । धरती की पपड़ी कही टूटी, कहीं छितरी, कहीं उभरी और एक गेप में खारा पानी भर आया।
धरती की सबसे मोटरी परत mantle [आवरण या आच्छादन] में एक खास खनिज बहुतायत से पाया जाता है Olivine [ओलिवीन]। रासायनिक फार्मूला है (mg Fe)2 SiO4 मेग्नेशियम आयरन सिलिकेट | लाल सागर बनते समय ओलिवीन के कुछ Crystal [रवे] पेरीडाट [पन्ना] में परिवर्तित होने लगे।
सागर की पेंदी की दरारों में जब खारा पानी घुसने लगा तो अपने साथ मनीस्टोन भी गाड़ता गया । जगराबाद द्वीप की पूर्व-पश्चिम दिशा में प्रकृति द्वारा खींची गई Fault line [दरार] में आज भी Peridot के सर्पीले डिपोजिट मिलते है ।
बाइबिल में कहानी आती है — सेंट जॉन, एक यूनानी द्वीप पेटमास पर निर्वासित है। ईश्वर उसे कहते है “दुनिया फिर से गढ़ी जायेगी। समुद्र खाली होगा। धरती प्रकट होगी। एक नया जेरुसलम शहर बनेगा। वहां की इमारतें बेशकीमती जवाहरात की होगी ।”
हीरा / Diamond
महाद्वीपों की ऊपरी परत [Continental Crust] के सबसे पुराने अवशेषों में हीरे का जन्म होता है। धरती ग्रह के निर्माण के आरम्भिक कुछ अरब वर्षों की कथा के साक्षी है हमारे आज के Diamonds.
इन चमकीली पारदर्शी रचनाओं में दाग कहां से आते है ? प्रागैतिहासिक काल के सागरों में विचरण करने वाले ‘जीवों के मृत शरीरों के अवशेष — धरती में 100-100 मील अन्दर धंसे हुए ।
भयंकर दबाव में और अकल्पनीय रूप से गरम भट्टियों में दुनिया के कठोरतम पदार्थ की रचना होती है। साढ़े तीन अरब वर्ष पुरानी गाथा है यह ।
डायमन्ड बनने की केमिकल प्रोसेस जटिल और अल्पज्ञात है । इतना पता है कि हीरा बनता है Limestone [चूना पत्थर] जिसमें से आक्सीजन के समस्त परमाणु निकाल लिये गये और केवल कार्बन शेष रह जाता है ।
हीरे को धरती पर कौन लाता है। केन्द्र में खदबदाते अति गर्म Magma की खास पिचकारी [Kimberlite] किसी तरह फूट कर बाहर आती है — ज्वालामुखियों के माध्यम से। लावे के साथ हीरे के कंकर नदियों, वादियों और झीलों में जमा होते जाते हैं। मध्ययुग में लोककथाएं कहती थी” डायमाण्ड उस धरती से आते हैं जहां छः माह दिन, छः माह रात रहती है। वहां जहरीले जीव हीरों की हिफाज़त करते हैं । उन पर लिपटे रहते हैं। जहर बुझाते है। पुरानी फिल्मों में सीन आता था कि हीरोइन ने हीरे की कनी चाट कर जान देदी ।
Jade जेड / Dream Stone हरापन्ना / हरिताश्म
करोड़ों साल पहले महाद्वीपों ने वर्तमान स्वरूप नहीं पाया था । तब दो सुपर – कान्टिनेन्ट होते थे :- यूरेशिया और गोंडवाना । गोंडवाना के टुकड़े हुए और उनसे बने दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, अरब, मेडागास्कर, भारत, आस्ट्रेलिया और एन्टार्कटिका।
बहते बहते गोंडवाना के टुकड़े अलग—अलग जगहों पर यूरेशिया की प्लेट से टकराएं । अनेक पहाड़ बने । आल्प्स, एटलस, पायरीनीज और हिमालय । धरती की महाकाय परतों के दबाब में सागर की पेंदी और पानी महाद्वीप के बीच पिचकने लगे । सोडियम, एल्यूमीनियम, सिलिकान और आक्सीजन के सम्मिश्रण और रासायनियक संलयन से Jadeite या जेड नामक रत्न बना। यह सोडियम और एल्युमीनियम का सिलेकेट है। जेड का दूसरा प्रकार नेफ्राइट होता है जो केल्शियम तथा मेग्नेशियम का सिलिकेट होता है । ये रंगहीन या सफेद हो सकते हैं। अन्य रंग जैसे कि हरा, लाल, बैंगनी आदि की वजह होती है कुछ धातुई मिश्रण जैसे कि लोहा, क्रोमियम और मैंगनीज ।
मृतप्राय सागर की पेंदी उभर उभर कर जब पर्वत में परिवर्तित हो रही थी तो उसके अवयव ऊंची ऊंची चोटियों तक जा पहुंचे। हिमालय के स्थान पर जो जल था, उसका नाम था टीथियन – सागर ।
चीनी किवदंतियों में कहा जाता है कि पदार्थ और गति के योग से दुनिया का निर्माण हुआ है। चीन और जापान में जेड बहुत लोकप्रिय रहा है लेकिन यूरोप में नही । चीन की कन्फ्यूशियस परम्परा में जेड को साहस, बुद्धि, न्याय, करुणा और विनम्रता का प्रतीक माना जाता है। जेड के अवशेष सिंधु घाटी सभ्यता में मिले थे । लेकिन भारत में इसकी लोकप्रियता मुगल काल में बढ़ी ।
Ruby [माणिक] [लाल] [लाल मणि]
पांच करोड़ वर्ष पहले भारत महाद्वीप शेष एशिया से प्रथक था। दोनों के टकराने से हिमालय बना । अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कश्मीर, नेपाल, बर्मा, वियतनाम तक फैले पूर्व-पश्चिम आर्क में रुबी के डिपोजिट मिलते हैं। धरती की नदियों में बहने वाली गाद जब निथर कर [Sediment] तलछट के रूप में जमती है तो Shale stone बनते हैं । यह एक महीन दानों वाली चट्टान होती है जिसमे मिट्टी के अनेक खनिज रहते हैं। उच्च दबाव व तापमान से एल्यूमीनियम और आक्सीजन मिल कर आक्साइड बनाते है जिसमें क्रोमियम जुड़ कर लाल रंग प्रदान करता है। [Al2O3 Cr].
Crystals (रवा या स्फटिक) उन ठोसों को कहते हैं जिनके अणु, परमाणु, आयन एक व्यवस्थित क्रम में लगे होते हैं । यही क्रम बार बार दोहराया जाता है।
दो महाद्वीपों के टकराने पर माणिक के स्फटिक उभर कर सतह पर आते है। यहां उनका सामना होता हैं । मृत प्राणियों के फासिल्स से । जिसका पदार्थ Organic [जैविक] श्रेणी का होता है । एल्यूमीनियम के कुछ परमाणु क्रोमियम द्वारा विस्थापित कर दिये जाते हैं । चटख सुर्ख लाल रंग की आभा निखर उठती है । बर्मा के खनिक, रुबी को कबूतर-रक्त [Pigeon Blood] कहते हैं।
इस्लामिक मान्याताओं में अल्लाह ने एक देवदूत से कहा कि तुम धरती को अपने कन्धों पर सम्हालो । देवदूत के पैरों के नीचे कोई सहारा न था। इस हेतु अल्लाह में Ruby का एक पहाड़ बनाया जिसमें 7000 छिद्र थे । प्रत्येक छेद में में एक—एक सागर रिस रहा था ।
Emerald /पन्ना, मरकत, जवाहर
धरती की गहराई में अति गरम द्रुतपुंज [magma] होता है । पिघली हुई चट्टानों और खनिजों का उबलता हुआ मोटा गारा ।
मरकत या जवाहर, मेग्मा की छोटी बड़ी कोठरियों में बनते हैं। सागर की पेंदी की पपड़ी और महाद्वीपों की धरती की पपड़ी के मध्य घनघोर घर्षण होता है, पानी में ही डूबे हुए पर्वत बनते है, मेग्मा ऐसे ऊपर आता है मानो सोडा वाटर की बोतल खोलने पर गैस बाहर निकलती हो ।
इसी गारे में बेरीलियम Beryllium नामक धातु के टुकड़े एमराल्ड को उसकी रंगीन आभा प्रदान करते हैं। समुद्र तटों पर जीवों के मृत अवशेषों से थोड़ा सा क्रोमियम भी आ मिलता है ।
लेटिन अमेरिकी देश कोलम्बिया की पुराण कथा में ऐसे ही Fusion का उल्लेख मिलता है । भगवान एरिस ने प्रथम पुरुष व स्त्री बनाए । उन्हें आजीवन यौवन का वर दिया बशर्ते कि वे दोनों एक दूसरे के प्रति वफादार रहे। लेकिन क्या करें? स्त्री फ्यूरा बेबफाई कर बैठी । फ्यूरा और उसके पति टेना को बुढ़ापा आने लगा। भगवान के मन में कुछ दया आ गई । मितेरो नदी की घाटी के कगारों पर वे दोनों पर्वत शिखर बना दिये गये । पहाड़ की दरारों में फ्यूरा के आंसू Emerald बन कर जमा होते रहे । कोलम्बियां में आज भी वैसी खदाने हैं ।
सोना /Gold
धरती पर मिलने वाल सोना, सौरमण्डल के बनने के पहले से आकाशगंगा में मौजूद सुपर-नोवा और न्यूट्रान स्टार के टकराने से बना होगा। धरती ग्रह के निर्माण के समय सोना खूब गहराई में धंस गया । सतह पर मिलते वाले डिपोजिट्स शायद बड़े बड़े एस्टीराइड (उल्का) के माध्यम से आते रहे होंगे।
यह एक नरम धातु है इस जिस पर शिल्पकारी आसान है। यह धातु वजनदार (अधिक घनत्व) व ऐसी पीली चमक वाली है जिस पर दाग नहीं पड़ते । सोने के अयस्क Metamorphic (बहुरूपी) चहानों में क्वार्टज पायराइट व अन्य खनिजों के साथ मिलते हैं ।
भूमि की गहराई में गरम पानी द्वारा चट्टानों फंसे पड़े अनेक अयस्क [Ore] धोले जाते हैं। यह मिश्रण जब ठण्डा होता है तो शुद्ध ठोस धातु के डल्लो में परिवर्तित हो जाती है। हवा पानी की मार से चट्टानों का क्षरण होता है। स्वर्ण-रज नदियों के की रेत में बहते बहते दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंचती है। इतिहास में Gold-Plush की अनेक दास्तानें हैं ।
हिन्दी | अंग्रेजी | रासायनिक नाम | प्रमुख स्थान | चित्र /Image | Hardness / कठोरता | |
हीरा | Diamond | कार्बन /Carbon | साउथ अफ्रीका, रशिया | 10 | ||
लाल माणिक | Ruby | Al2O3 एल्यूमिनियम ऑक्साइड | 9 | |||
नीलम | Sapphire | Al2O3 अल्यूमिनियम भस्म (ऑक्साइड) | श्रीलंका | 9 | ||
पुखराज | Topaz | Al2SiO4(FeOH)2 | जापान, ब्राज़ील | 8 | ||
पन्ना / मरकत / जवाहर | Emerald | (Be3Al2 (SiO3)6) | कोलम्बिया | 7½ – 8 | ||
Jade | चीन | 6½ – 7 | ||||
मनी स्टोन | Peridot Moneystone | (mg Fe)2 SiO4 मेग्नेशियम आयरन सिलिकेट | लाल सागर | 6½ – 7 | ||
दुधिया पत्थर | Opal | SiO2·nH2O) | आस्ट्रेलिया | 5½ – 6½ | ||
सोना | Gold | Au (Auirum) | 2½ – 3
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1. Brilliant
2. Ruby 3. Sapphire 4. Emerald 5. Opal 6. Oriental Topaz 7. Oriental AMethyst 8. Pearl 9. Blue Topaz 10. Ruby Spinelle 11. Chrysolite 12. Carbuncle 13. Pink Topaz 14. Turquoise 15. Aquamarine 16. Garnet 17. Chrysoprasus 18. Jaycinth 19. Beryl 20. Tourmaline 21. Peridot |
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बहुमूल्य रत्नों की मंजूषा और शब्दावली — उनके तुलनात्मक मूल्य के क्रम से जमी हुई — साभार — जेमोलाजी इंस्टीट्यूट, अमेरिका |
रत्नों से जुड़ा मिथ्याविज्ञान और अंधविश्वास
गूगल में “रत्न” / “Gem Stone” शब्द लिख कर खोजें तो अनेक Sponsored links मिलती है’ जो या तो “रत्न” खरीदने बेचने की बात करती हैं या किस रत्न को धारण करने से क्या लाभ होगे इसकी चर्चा करती हैं। यह सब मिथ्याविज्ञान है। Pseudo-Science है। अंध विश्वास है। कोई सबूत नहीं है। लोग मूर्ख बनते है। अपनी जेबें ढीली करते है। मुगालते में रहते हैं। सपने देखते है। चमत्कार की उम्मीद करते है। पुरुषार्थ नही करते ।
जुन्मकुंडली के ग्रहों राशियों, जन्म के माह या तारीख आदि से इनका संबंध जोड़ा जाता है ।
अनेक लुभावने वादे किये जाते हैं। कहते हैं कि इनमें दैवीय शक्तियाँ होती है । जो रोगों का निवारण करती है। जीवन की कई परेशानियों से मुक्ति मिलती है। रत्न और धातु का योग सोच समझ कर बताया जाता है। तथाकथित स्वयंभू रत्न विशेषज्ञ [Gemologist] की फीस तगड़ी होती है। मंगल का रत्न मूंगा, सोने या लाल तांबे में और बुध का रत्न “पन्ना” सोने या कांसा [Bronze] धातु में पहनने की सलाह दी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नीला नीलमणि या नीलम, लाल माणिक और दूधिया ऑपल आदि चमत्कारी और शक्ति शाली रत्न हैं। गलत राशि, गलत धातु के साथ पहनने से खतरनाक बुरे प्रभाव होते हैं ।
पढ़े लिखे बुद्धिमान लोग क्यों ऐसी अप्रमाणित अतार्किक बातों में विश्वास करने लगते हैं। ऐसे तमाम दावों का खोखलापन आसानी से समझा जा सकता है । करोड़ों लोगों की एक ही राशि होती हैं । प्रत्येक की जिन्दगी की कहानी जुदा होती है। अंगूठी में नीलम भला कैसे असर डाल सकता है।
कुछ लोग बड़ी हास्यास्पद व्याख्या करते हैं । कहते है कि जिस स्थान और जिस क्षण शिशु का जन्म होता है उसी क्षण ग्रहों की स्थिति की छाप पड़ जाती है। विभिन्न ग्रहों से आने वाली ऊर्जा किरणों की Wavelength और रत्न के रंग की Wavelength में सामंजस्य यदि बैठाया जावे तो उक्त ऊर्जा अंगूठी के रास्ते शरीर में प्रवेश करके अच्छे और बुरे असर डालती है ।
ऐसी बेहूदा बातें लोगों पर Placebo प्रभाव डालती है । मानसिकता बदल जाती है। जैसा सोच वैसा असर झूठमूठ में नजर आने लगता है ।
इस तरफ के दावे प्रथम द्रष्टया [Prima facie] इतने लचर हैं कि उनकी प्रामाणिकता पर शोध करने के लिये धन व समय लगाने का कोई केस नहीं बनता है ।
इस तरह की मूर्खता भरी बातें पढ़ कर, सुनकर मैं सिर घुनता हूँ। यह कैसी मानवीय कमजोरी है जो अनादि काल से लेकर आधुनिक काल तक सभी देशों, सध्यताओं और संस्कृतियों में चली आ रही है ।
राजकपूर की फिल्म ‘बाबी’ में’ गीतकार विठ्ठल भाई पटेल ने मुझ जैसे लोगों के दिल की बात इस गीत में कह दी थी
“न चाहूँ सोना चाँदी
न चाहूँ हीरा मोती
ये मेरे किस काम के”
असली रत्न तो ज्ञान से भरी पुस्तके हैं । तभी तो प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय में तीन प्रमुख और विशाल libraries के नाम थे
रत्नो दधि [Sea of Jewels]
रत्नसागर [Ocean of Jewels]
रत्न रंजक [Jewel Adorned]
मैंने शादी के बाद कुछ महीनों तक गले मे चेन व हाथ में अंगूठी पहनी थी । मुझे कहा गया था इससे ‘आत्मविश्वास’ बढ़ता है । ‘सोना’ अच्छा भाग्य लाता है । नहाते समय पानी में घुलकर सोने के कुछ परमाणु आपकी काया को पोषित करते हैं, बिमारियों से सुरक्षा प्रदान करते हैं । मैं समझ नही पता कि हँसू या रोऊँ या गुस्सा करूं ।
फिल्म “थ्री इडियट” में आमिर खान का डायलाग मुझे अच्छा लगा था जिसके कारण उसका मित्र (शर्मन जोशी अभीनीत) अपनी सारी अंगूठीयां डस्टबिन में फेंक देता है और खुद के आत्मविश्वास के बूते पर सफलता प्राप्त करता है ।
यहां तक तो फिर भी ठीक है कि रत्न मानव की आँखों को सुहाते है। सहेजे जाते हैं। भेंट दिये जाते हैं । आभूषण के रूप में पहने जाते हैं । नर नारी इन्हे धारण करके पुलकित होते हैं, इतराते हैं, एक दूसरे को लुभाते है। श्रंगार रस की निष्पत्ति होती है ।
लेकिन मुश्किल तब आती है जब मंहगे रत्न व धातुएं मनुष्य के अहंकार को पोसते है । लालच, अपराध और युद्ध की वजह बनते हैं ।
शायद विक्टर ह्यूगो ने अपने किसी उपन्यास में लिखा था ।
“प्रति वर्ष इतने हजार किलो सोना पैदा होता है, पहना जाता है । प्रतिवर्ष उसमें से इतने ग्राम घिस कर क्षरण हो जाता है, कम हो जाता है। कहां जाता है? इन्सानों के दिलों में कालिख बन कर जमा हो जाता है।”
मुझ जैसे कुछ अन-पारखी लोग जरूर होंगे जिनके लिये क्या पीतल, क्या सोना? पत्नी नया गहना पहने या कुछ दिनों के लिये न पहने और साजन का ध्यान ही न जाये तो सजनी क्या करले ?
पूंजी निवेश व सुरक्षा-धन के रूप में सोना और रत्नों का कुछ महत्व मुझे पता है। वह एक अलग विषय है।
वेदों के अनुसार ब्रहमा का जन्म हिरण्यगर्भ नामक सोने के अण्डे में से हुआ था। उसकी आभा या चमक सूर्य के समान थी ।
लेकिन एक उपनिषद में यह भी कहा है कि
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितम् सुखम्
पूषन्त्र पावृणु सत्य धर्माय दृष्ट्ये ।
सत्य के दर्शन के लिये स्वर्ण के मायावी आवरण को हटाने की प्रार्थना है ।