

प्रेम कहानी 1: ” नियति “
शीला मिश्रा
मंदिर से निकलकर पहली गली में घुसते ही दूर कोने में कुर्सी पर बैठी उस मुख पर जैसे ही निगाह गई कि मैं चौंककर ठिठक गया…. भौंचक्का-सा अपलक उसे देखता ही रहा और फिर…. देखते…….देखते मन में उथल-पुथल सी मचने लगी…..यह …यह तो मेरी प्यारी भावना है….., जिसे मैं प्यार से भानु कहकर पुकारता था ,कितने साल हो गए बिछड़े हुए …पर मैं तुरन्त पहचान गया …वैसी ही तो है…… भोली ,मासूम, चमकती हुई सी आँखें और …और मुख पर छाई मोहक सी मुस्कान । मैं उसी मुस्कान में न जाने कब तक खोया रहा ,तंद्रा तब टूटी ,जब एक लड़की उसके पास ऊँची सी टेबल पर रखी डलिया से गजरा उठाकर उससे मोलभाव करने लगी…,अचानक मैं चौंक गया… तो क्या भानु गजरा बेचती है …? पर क्यों….? वह ऐसा क्यों कर रही है …? मैं अकबकाया सा इस प्रश्न का जवाब स्वयं ही टटोलने लगा …..क्या गजरें बेचना उसके लिए जरूरी है….? शायद नहीं…शायद क्या… बिल्कुल भी नहीं… क्योंकि उसकी तो अच्छी खासी आर्थिक स्थिति थी फिर….?फिर क्यों कर रही है वह ऐसा…..? अंतर्मन से दनदनाता सा एक जवाब आया….- तुम्हारे लिए…….., हाँ… शायद … मेरे लिए ही…, अंतस् में तीव्र चुभन सी महसूस होने लगी और इसके साथ ही अतीत छलांग मारते हुए मेरे सामने आकर खड़ा हो गया……. उन दिनों मेरी पोस्टिंग बनारस में थी ।सावन का पहला सोमवार था,मैं आफिस जाने के पहले बाबा विश्वनाथ के दर्शन करके बाहर निकला ही था कि पीछे से हल्की सी चीख के साथ एक हाथ तेजी से मेरी पीठ पर पड़ा, मैंने पीछे मुड़कर देखा तो एक लड़की गिरने से बचने के लिए मेरी शर्ट को एक हाथ से कसकर पकड़ी हुई थी , जिसके कारण पीछे मुड़ने में मुझे जकड़न सी महसूस हो रही थी फिर भी किसी तरह मुड़ते हुए मैंने अपने हाथ से उसके हाथ को सहारा दिया तो वह कुछ संभली फिर धीरे धीरे सामान्य स्थिति में आई। उसके हाथ से प्रसाद गिरकर बिखर गया था और जल का लोटा छन्…न्…न्… की आवाज के साथ दूर जाकर गिरा था । मैं लोटा लाकर उसके हाथ पर रखकर आगे बढ़ा ही था कि मीठे स्वर में “धन्यवाद “सुनकर फिर पीछे मुड़ा ,पता नहीं क्या था उस मुस्कुराहट में , मेरे कदम वहीं थम गये…, फिर उसके साथ कदमताल करते हुए हम साथ ही मंदिर से बाहर निकले ,बाहर निकलकर एक पल के लिए मैं ठिठका तो बड़े संकोच से पुनः एक बार धन्यवाद कहती हुई वह शीघ्रता से सामने वाली गली की ओर चली गई , मैं सम्मोहित सा उसे जाते हुए देखता रहा।
चेहरे पर मुस्कान के साथ धीरे-धीरे बनारस में बिताई शामें मुझे याद आने लगीं …., कितने रंगीन सपने दिखाए थे मैंने भानु को .. रोज सफेद फूलों का गजरा लेकर उसके बालों में सजाता था और कहता था कि-” जिस दिन शादी होगी ना, इन सफेद फूलों के बीच मैं लाल गुलाब का फूल लगाऊंगा …..जो होगी मेरे प्यार की निशानी…..”,फिर लजाती शर्माती भानु के गाल,गुलाब के लाल रंग से दहक उठते।
गुलाब की याद आते ही मैं वर्तमान में लौटा… उसकी डलिया में कितने सारे गजरे थे पर एक में भी गुलाब नहीं दिख रहा….! क्या …. क्या वह गुलाब अब पसंद नहीं करती ….?अंदर से आवाज आई -” क्यों करेगी पसंद …..?”
सच में… मैंने उसे लाल गुलाब के नाम पर झूठे सपने दिखाए थे….. सिर्फ रंगीन सपने ही तो… और ………और…यह मेरी प्यारी भानु …….उन सपनों को आँखों में….. सजाए…….,मेरी राह तकती बाजार में बैठकर डलिया में गजरों को सजाए उन्हें बेच रही है….! क्यों देख रहा हूँ मैं यह सब……? क्या मेरी यही नियति है…….? जिसको दिल से चाहा….. अपने से ज्यादा चाहा….,उसको इस हाल में देखूं ….?मन कुछ भारी सा हो गया, स्वयं से प्रश्न कर बैठा -“फिर मैं यहाँ आया ही क्यों हूँ ……?” मैं……..मैं…..क्या सिर्फ बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने आया था……,मन झूठ कह सकता है , भावनाएं तो नहीं ……! अपने दिल की चोरी अपने ही मन द्वारा पकड़े जाने से मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई….. ,पनीली आँखें उसकी तरफ देखे जा रहीं थीं…. धीरे से अंत:करण ने कहा-” शायद बाबा विश्वनाथ की यही इच्छा हो।”हर तकलीफ में मैं उन्हें ही तो याद करता रहा हूँ। तकलीफ कभी शारीरिक व आर्थिक तो रही नहीं पर हाँ….. मानसिक परेशानी तो बहुत झेली। भावना के विजातीय होने पर माता-पिता इस शादी के लिए हर्गिज तैयार नहीं थे, मैं कायर,इस सच को भावना के सामने व्यक्त करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और अपना तबादला करवा के शहर ही छोड़ दिया परन्तु भावना को छोड़ने का दुःख… मेरे साथ चला आया…
अपने प्यार को भुलाने की पीड़ा बहुत कष्टदायी होती है।माता पिता की खुशी के लिए पूनम से शादी तो की परन्तु उसको भी कहाँ खुश रख पाया ….? बच्चे न होने से वह बहुत दुखी रही फिर ऐसी बीमारी ने उसे घेरा कि लाख इलाज कराने के बाद भी उसे नहीं बचा पाया….. उसके जाने का दुख माता-पिता भी नहीं झेल पाए और एक-एक करके चल बसे , मैं रह गया अकेला ……बिल्कुल अकेला …….,सबकी यादों के सहारे जीने की कोशिश कर रहा था …. फिर तन-मन से टूटा मैं चला आया बाबा विश्वनाथ के चरणों में । मैं ….. मैं तो स्वयं को संभालने आया था पर बाबा विश्वनाथ….. उनकी….उनकी इच्छा …. क्या वे यही चाहते थे कि मैं भावना से मिलूँ……, यहाँ गलियों में गुजरते हुए उस तरफ निगाह क्या गई …कदम थम गये, आँखें ठहर गई ,और मन ….. उसमें तो भूचाल सा आ गया है लग रहा है कि बस दौड़कर जाऊँ और पूछूँ -“कैसी हो भानु?”
धीरे-धीरे कदम उस ओर बढ़ने लगे परन्तु मन में एक के बाद एक सवाल….. क्या मैं उससे नजरें मिला पाऊंगा….? क्या मैं उसके सवालों का जवाब दे पाऊंगा…..? क्या मैं उसका बीता हुआ वक्त लौटा पाऊंगा…..? शायद नहीं….. कभी नहीं…. भानु से कुछ दूरी पर ही कदम थम गये फिर अचानक मेरी निगाह भानु की ओर गई …..उसकी डलिया के सारे गजरे बिक चुके थे केवल एक गजरा बचा था तभी एक लड़की दौड़ती हुई आई और कहने लगी-” दीदी ,दीदी यह वाला गजरा मुझे दे दो ।”
“नहीं …,यह गजरा मैं नहीं दूंगी ।”
“आप तो गजरे बेच रहीं हैं न?”
” हाँ,पर यह गजरा बेचने के लिए नहीं है। यह मैंने अपने लिए बनाया है।”
” तो आपने लगाया क्यों नहीं ?”
“मैं रोज अपने लिए बना कर लाती हूँ ।किसी का इंतजार करती हूँ। जब वह आएगा तो मेरे बालों में लगा देगा।” इतना कहकर आँसू की दो बूँदें उसकी आँखों से ढुलक पड़ीं।उस गजरे में लाल गुलाब लगा देख मेरा मन हाहाकार कर उठा।वो…..वो…..क्या ….,अभी तक मेरा इंतजार कर रही है…….? मेरे आँसू उसके आँसुओं के अनुगामी बन ढुलकने लगे।अंदर से आवाज आई -‘जल्दी जाओ उसके पास.’….. मैं द्रुत गति से चलते हुए उसके सामने जाकर खड़ा हो गया और शीघ्रता से बोल पड़ा -“मुझे यह गजरा खरीदना है।”
वह सामान समेटती हुई बोली -“यह गजरा बिकने के लिए नहीं है।”
“मुझे यही खरीदना है।”यह सुनकर उसने मेरी तरफ घूरकर देखा …मैंने सिर पर पहनी टोपी धीरे से हटाई, आँखों से काला चश्मा उतारकर उसकी आँखों में झांकते हुए कहा -“गजरा आपके लिए ही खरीदना है , अपने हाथों से आपके बालों में लगाने के लिए ……।”
यह सुन वह पलकें झपकाती हुई कुछ पल मुझे देखती रही फिर दोनों हाथों को अपने गालों पर लगाती हुई विस्मय से चीख पड़ी -“तुम…….!”
” हाँ …. मैं…..”.क्या यह लाल गुलाब वाला गजरा लगा दूँ तुम्हारे बालों में…..?”
शीला मिश्रा
शीला मिश्रा मध्यप्रदेश की एक जानी-मानी साहित्यकार हैं। पिछले पन्द्रह वर्षों से कहानी के साथ-साथ उनके आलेख, समीक्षा, व्यंग्य एवं कविताएँ विभिन्न पत्रिकाओं व अख़बारों में तथा आकाशवाणी से निरन्तर प्रकाशित होती रही हैं। विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों से निरन्तर कहानी पाठ करती रहतीं हैं। वर्ष 2016 में प्रकाशित उनके कहानी संग्रह ‘एक नया आसमान’ ने साहित्य जगत में एक विशिष्ट पहचान बनाई है। इस कहानी-संग्रह के लिए उन्हें साहित्य अकादमी द्वारा प्रतिष्ठित ‘दुष्यंत कुमार पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। इसके अतिरिक्त उन्हें अनेक सम्मान व पुरस्कारों से विभूषित किया गया है, जिनमें से प्रमुख है:
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साहित्य भूषण सम्मान, इलाहाबाद
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सुन्दर सृजन सम्मान, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, भोपाल
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माधुरी शुक्ला कथा सम्मान, उ.प्र.
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साहित्य परिषद
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श्रेष्ठ साधना सम्मान, अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन
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शिक्षा सम्मान, कादम्बिनी शिक्षा एवं समाज कल्याण समिति, भोपाल
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प्रसिद्ध पत्रिका ‘अहा जिंदगी’ने आपको श्रेष्ठ कहानी के लिए सम्मानित किया है।