प्रेम कहानी-2 :”पूरा आसमान”

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प्रेम कहानी-2 :”पूरा आसमान”

नीति अग्निहोत्री

वह जब भी आती अपनी हंसी किसी झरने की तरह कलकल बिखेरती रहती, जिसमें सितार के तारों की सी मधुरता मिली होती। पायल मितेन्द्र की छोटी बहन की घनिष्ठ सहेली है जो दिन में एक बार अवश्य आती । पायल की हंसी में एक अजीब सी कशिश और जादू सा था। जब पायल खिलखिला कर हंसती तो लगता घुंघरू खनक रहे हों। मितेन्द्र ईश्वर से प्रार्थना करता कि पायल की इस निश्छल हंसी को किसी की बुरी नजर का साया नहीं पड़े । उसने पायल की हंसी को चुपचाप रिकॉर्ड भी कर लिया था। उसकी जब इच्छा होती रिकॉर्ड चालू करके देर तक उस हंसी में डूबा रहता और पायल की हंसी की फुहारें उसे अंदर तक भिगो जातीं। वह सोचता कि इतना मधुर ,सुरीला, अकृत्रिम और खनकता हुआ कैसे हंस सकता है। उसने तो अभी तक बनावटी हंसी और ठहाके ही सुने थे। उन बनावटी ठहाकों में इतनी ठंडक और सुकू़न कहां जो अंतर्मन को भिगो दे। पायल की हंसी के जरिए तो ऐसा लगता मानो कोई तरल पदार्थ उसके रक्त में मिल कर सीधा ह्रदय तक पहुंच गया हो ।उन क्षणों में मितेन्द्र को अपनी निराशाएं और चिंताएं बकवास सी लगतीं।
जिस दिन पायल नहीं आती लगता कि घर में कोई रहता ही नहीं है। सब अपने -अपने काम में व्यस्त रहते। पायल आती तभी घर की एकरसता टूटती। किसी दिन पायल के नहीं आने पर दिशा मितेन्द्र दादा को पायल की रिकॉर्डेड हंसी सुनते हुए देख चुकी है तो उसने पूछा – दादा पायल की हंसी आपको इतनी पसंद क्यों है ?
मितेन्द्र ने कहा -मैं उस हंसी को सुन कर सब भूल जाता हूं कि पिताजी नौकरी से अवकाश प्राप्त कर चुके हैं। भूल जाता हूं कि दो साल से बेरोजगार जैसा हूं और अच्छी नौकरी की तलाश में हूं। भूल जाता हूं कि घर का खर्च कितनी मुश्किल से चलता है। मेरे अंदर एक नई ऊर्जा और प्रेरणा का संचार हो जाता है। मैं सोचने लगता हूं कि ईश्वर ने दुनिया में इतनी प्यारी हंसी बनाई है तो अवश्य ही दुनिया इतनी सुंदर और पुरकशिश है कि हंसी जैसी चीज का भी निर्माण किया। मान लो हंसी नहीं होती तो दुनिया का क्या हाल होता ? सब लोग होठों को हर समय एक जैसी अवस्था में ही रखते। मुंह बस खोलने के लिए ही खोलते। कोई मजेदार या खुशी की बात कैसे प्रकट करते ?तब होठों पर एक सन्नाटा सा पसरा होता और चेहरे बस पत्थर की मूर्ति की तरह कठोर ,संवेदना हीन या नीरस से होते।ईश्वर का धन्यवाद कि हंसी बना कर जीवन को बेनूर और शुष्क होने से बचा लिया। एक आशा सी मन में जगा दी कि आज नहीं तो कल उसका जीवन भी हंसी से लबरेज होगा।
दिशा -वाह दादा आप तो पायल की हंसी सुन कर दार्शनिक बन गए।
मितेन्द्र – हां दिशा पायल की हंसी के लिए पहले ईश्वर ने उसका गला बड़े जतन से घड़ा होगा और फिर उसमें एक सोचे -समझे अनुपात में झरने की कलकल ,पायल की खनक के साथ लयबद्ध संगीत भरा होगा। मेरा बस चले तो पायल की हंसी पूरी दुनिया को दिखाऊं कि देखो सरल और सच्ची हंसी कैसी होती है ?दुनिया वालों तुम क्या खाकर ऐसी हंसी हंसोगे जो हर समय अपने नफे -नुकसान से परे कुछ नहीं सोच पाते। घर में पति या पत्नी को खुश करने के लिए बनावटी हंसी या मुस्कान। कार्यालय में अपने साहब को खुश करने के लिए होठों पर एक निश्चित अनुपातिक मुस्कान। कितना होंठ किसके सामने कितना खुलना चाहिए यह पहले से तय रहता है। मित्रों के सामने एक अलग नकली सी हंसी जो बरबस होठों पर लाई सी लगती है। मेरा बस चले तो पायल को लेकर पूरे देश में घूमूं और उसकी हंसी का प्रदर्शन करूं ताकि सब शहर व गांव वाले जाने कि वास्तव में हंसी क्या होती है और ऐसी निर्मल हंसी कितनी जरूरी है जीवन के लिए। मैं तो पूरी दुनिया को हास्य से भर देना चाहता हूं, क्योंकि जरूरी नहीं जीवन दुखों का पर्याय बन कर रह जाए। दिशा तुम पायल को मत बताना कुछ ,वर्ना वह सहज नहीं रह पाएगी।
दिशा -ठीक है नहीं बताऊंगी ।
मितेन्द्र को आज कुछ अधूरा सा लग रहा है। पायल आज आई क्यों नहीं। उसकी हंसी के बिना घर सूना सा लग रहा है। पायल घर के पास ही रहती है। मितेन्द्र ने दिशा से कहा कि जाओ देख कर आओ कि पायल आज आई क्यों नहीं ?दिशा ने पायल के घर से आकर बताया कि पायल को देखने कुछ मेहमान आने वाले हैं। किसी बिचौलिए ने कोई ऊंचे पद पर कार्यरत लड़का बताया है। मितेन्द्र को लगा कि उसके दिल में कुछ नुकीला सा खिच्च कर के उतर गया है। यदि वह किसी अच्छे पद पर होता तो पायल की हंसी सदा के लिए उसकी हो जाती। अभी तो मितेन्द्र के सिर पर दिशा के विवाह का और छोटी बहन के विवाह का बोझ है इसलिए कुछ नहीं कर सकता । वह किस दम पर कहे कि मत करो पायल का रिश्ता कहीं और जगह ,क्योंकि पायल की हंसी पर केवल उसका अधिकार है । उसे अच्छी नौकरी पता नहीं कब मिलेगी। कहीं माता-पिताजी
बहन और छोेटे भाई की जिम्मेदारी के बोध में पायल की हंसी खो गई तो?वह अपनी ही नजरों में अपने को अपराधी समझेगा जो उसे चैन से नहीं जीने देगा। यदि अच्छे पद पर कार्यरत् लड़का मिल रहा है तो हो सकता है कि पायल की हंसी इसी तरह बरकरार रहे। वह ईश्वर से पायल के लिए प्रार्थना करेगा सदा कि उसकी हंसी सदाबहार रहे ।
आज मितेन्द्र को अपनी विवशता पर खीझ ,गुस्सा औ बेतरह चिढ़ महसूस हो रही है। अभी तक पायल की हंसी की सरगम उसके अंदर उमंग और कुछ करने का जज़्बा भर देती थी । रिकॉर्डेड हंसी वह जीवंत अहसास पैदा नहीं कर सकती जो पायल के व्यक्तित्व की सुगंध भी समाए रखती है। मितेन्द्र की इच्छा हो रही है कि सारी डिग्रियों को जला दे और आत्महत्या कर ले,परन्तु वृद्ध माता -पिताजी का निरीह व थका हुआ चेहरा ,दिशा और छोटे भाई का चेहरा सामने आ गया। घर का बड़ा बेटा वही है और सब उसे संभालना है। अच्छी नौकरी आज नहीं तो कल मिल जाएगी।
दिशा से मालूम पड़ा कि पायल का विवाह तय हो गया है और अगले महीने ही मुहुर्त है ,वर्ना दो वर्ष विवाह नहीं हो सकता। देखते ही देखते पायल छोटी से बड़ी हुई और अब दुल्हन बनने जा रही है। मितेन्द्र ने यह सुन कर एक गहरी सांस भरी कि पता नहीं कब दिशा के हांथों में मेंहदी रचेगी ?पता नहीं कब डोली में बिठा कर अपनी बहन को बिदा करेगा ?
पायल के विवाह का दिन भी आ पहुंचा और मितेन्द्र ने भागमभाग करके विवाह की तैयारियां अपने हांथों से करवाईं। अब प्रश्न था कि पायल को क्या उपहार दे?यहां तो पेट भरने का ही पर्याप्त जरिया नहीं है तो महंगा उपहार कहां से दे ?किसी से उधार मांगना मितेन्द्र को पसंद नहीं है । बहुत सोचने के बाद मितेन्द्र ने वाद -विवाद में चांदी के जीते पदक बेच कर एक नाजुक सी पायल लेकर डिब्बी में इन शब्दों के साथ रखा कि इस पायल के घुंघरूओं की तरह अपनी हंसी सदा खनकाते रहना। कोई बुरी नजर तुम्हारी हंसी को छू नहीं पाए ।
पायल ससुराल गई और वहां से करीब पन्द्रह दिन बाद लौट कर आई।दिशा से मिलने आई तो मितेन्द्र ने महसूस किया कि वह अपनी खनकती हंसी कहीं छोड़ आई है। पायल के जाने के बाद मितेन्द्र ने पूछा कि पायल की ससुराल ठीक तो है ना?कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है ?पायल इतनी बुझी -बुझी सी क्यों है?दिशा बोली कि पायल ने कुछ खास नहीं बताया, परन्तु वह बहुत खुश भी नहीं लग रही है।हो सकता है लगातार यात्रा से थक गई हो। वैसे मैं पूछूंगी तो कुछ छुपाएगी नहीं। पायल के ससुराल वाले आठ दिन बाद ले गए । दिशा को पूछने का अवसर नहीं मिल पाया, क्योंकि वह लगातार रिश्तेदारों के यहां भोजन पर निमंत्रित रही ।
मितेन्द्र को एक अच्छी सरकारी मौकरी मिल गई तो सबसे पहले पायल की याद आई कि पहले मिल जाती तो वह पायल के दिल को टटोल सकता था कि क्या इतनी जिम्मेदारियों के बीच खुश रह सकेगी क्या?अब तो यादें शेष रह गईं हैं ।मन जिंदगी के कुछ पलों को हमेशा के लिए यादों में संजो कर रखता है और समय की धारा उन्हें विस्मृत नहीं कर सकती । उन पलों की मीठी तरलता को घूंट -घूंट पीना चाहता है ,ताकि वह रस स्त्रोत उसे जीवित रख सके। मितेन्द्र पूरा आसमान चाहता था ,परन्तु
तकदीर के आगे किसकी चली है ?
मितेन्द्र को पता लगा कि पायल मायके आई है ,परन्तु बीमार है इसलिए आई नहीं।यह मालूम पड़ने पर मितेन्द्र पायल से मिलने उसके घर गया ।पायल की खनकती हंसी को वाकई किसी की बुरी नजर लग गई थी। फीका -फीका निस्तेज चेहरा और सूनी -सूनी सी बेरौनक आंखें उसके दिल का हाल बता रहीं थीं । मितेन्द्र को लगा कि पायल ससुराल में सुखी नहीं है। बाद में मालूम पड़ा कि उसके घरवाले धोखा खा गए व बिचौलिया भी ।बिचौलिया विश्वासपात्र था इसलिए पायल के घरवालों ने ज्यादा छान -बीन नहीं करी ।वर पक्ष ने जल्दी इसीलिए करी कि कहीं भेद ना खुल जाए। लड़का किसी ऊंचे पद पर नहीं है और ससुराल का माहौल भी जीने लायक नहीं है ।ससुराल वालों को आशानुसार दहेज नहीं मिला तो पायल को ताने सुनने पड़ते ।पति भी क्रूर और निर्मम है और व्यंग्य बाणों से छलनी होना पड़ता पायल को।पायल के गुण गौण होकर रह गए हैं । ससुराल में ननद का राज है जिसे उसके पति ने छोड़ रखा है । जब सात फेरे वाला पति ही अपना नहीं तो कौन अपना होगा?

प्रेम कहानी 1 : ” नियति “

पायल की व्यथा मालूम पड़ने पर मितेन्द्र को महसूस हुआ कि कलेजे पर किसी ने हथौड़े से प्रहार कर दिया हो । यदि वह पहले समर्थ होता तो पायल को अपने घर की लक्ष्मी बना कर शान से रखता। मितेन्द्र सोच रहा है के ऐसा क्यों होता है जिसके सुख -चैन के लिए अपनी जिंदगी भी वार देते हैं वह त्याग निरर्थक या व्यर्थ क्यों साबित होता है। जिसके लिए अपने अरमानों का गला घोंट देते हैं वह क्यों डूब जाता है?जिसकी खुशी के लिए दिन -रात प्रार्थना करते हैं वह निष्फल क्यों हो जाती है?मितेन्द्र का त्याग व्यर्थ हो गया । पायल का दर्द उससे सहन नहीं हो रहा है।वह अपने हिस्से के आसमान में पायल को हंसता -मुस्कुराता देखना चाहता है । उसने कभी कल्पना भी नहीं करी थी। यदि मितेन्द्र ने उससे स्पष्ट पूछ लिया होता वह उसका इंतजार कर सकती थी । दिशा उसकी ननद बन जाए इससे बड़ी बात क्या हो सकती थी? उधर दिशा भी अपनी झिझक और दब्बूपन को कोस रही है कि स्वयं पहल कर देती तो यह नौबत नहीं आती। हो सकता है अभी भी कोई रास्ता निकल आए और वह खुली हवा में एक निश्चिंतता की सांस ले सके ।रोज -रोज की यातनाएं सहन करने से अच्छा है एक झटके में मुक्ति पा ली जाए।
पायल ने अपना निर्णय घर वालों को बता दिया कि ससुराल की देहरी पर कदम नहीं रखेगी। वह जिंदगी किस काम की जिसमें मनचाही सांसे लेने की आजादी नहीं हो ।उसे अपना चाहने का हक है और अपनी जिंदगी से न्याय करने का हक है ।जो हुआ उसे एक बुरा स्वप्न मान कर भुला दिया जाए और तमन्नाओं की सीपियों में मनचाहे मोती रखें जाए, ताकि जिंदगी का अपमान होने से बच जाए। पायल ने स्पष्ट कह दिया कि वह मितेन्द्र से विवाह करना चाहती है ,क्योंकि मितेन्द्र भी घर आया तो पायल के सामने यह विकल्प रख चुका था ।
पायल के घर वाले तैयार हो गए। यह मालूम पड़ने पर मितेन्द्र को लगा कि एक हंसी को जिंदा रख उसने दुनिया की सबसे अनमोल चीज बचा ली है । अब पूरा आसमान उसका है जिसमें वह है और पायल है ।

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नीति अग्निहोत्री
57,सॉंई विहार ,इंदौर (म. प्र.)
स्वरचित है ।
मो. न. -9188395035