MP Assembly Election 2023: क्या इस बार इशारा त्रिशंकु जनादेश का तो नहीं? जानिए क्षेत्रवार सटीक राजनीतिक विश्लेषण!

कितने दिग्गजों की प्रतिष्ठा बची रहेगी, इस समर में?

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MP Assembly Election 2023

MP Assembly Election 2023: क्या इस बार इशारा त्रिशंकु जनादेश का तो नहीं? जानिए क्षेत्रवार सटीक राजनीतिक विश्लेषण!

निरुक्त भार्गव की खास रिपोर्ट

जब 03 दिसम्बर, 2023 (रविवार) को इलेक्ट्रॉनिक मतपेटियां मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के रहस्य को खटा-खट उगलना शुरू करेंगी, तो किसका भाग्य चमकेगा? भीषण पुरुषार्थ करने के बाद भी पनौती किसके हिस्से आएगी? काउंटिंग सेंटर्स पर लंच के बाद फंसा-फंसी वाली सीटों पर मतगणना किस दल को सांप-सीढ़ी की बिसात पर नीचे उतारेगी अथवा ऊपर चढ़ाएगी? शाम ढलते-ढलते कितनों का राजनीतिक सूर्य उतर जाएगा या उभर जाएगा? स्ट्रेटेजी और मुद्दों के हवाले से चुनावी चक्रव्यूह को भेद कर सत्ता सुंदरी को पाने के किसके दावे कितने सटीक साबित होंगे? कितने दिग्गजों की प्रतिष्ठा बची रहेगी, इस समर में? क्या इस बार का जनादेश कोई बड़ा उलटफेर लेकर आ रहा है? क्या त्रिशंकु जनादेश का इशारा तो नही है?

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राज्य में 17 नवम्बर को कराये गए मतदान में कोई 5.60 करोड़ मतदाताओं में से रिकॉर्ड 77 फीसदी से भी अधिक मतदाताओं ने अपने अधिकार का प्रयोग किया. सो, उनके बीच इन दिनों काफी कौतूहल है, उभरते परिदृश्य की जानकारी लेने के प्रति. और, महज 4 दिन ही बचे हैं, दूध का दूध और पानी का पानी होने में. इन दिनों कोई एक दर्जन एजेंसी अपने द्वारा करवाए गए एग्जिट पोल और पोस्ट-पोल सर्वे को रिफाइन करने में जुटी हुई हैं. 30 नवम्बर को शाम 7 बजे से भिन्न-भिन्न न्यूज़ चैनल्स पर मावठे की तरह गरजने, बरसने और गिरने लगेंगे इस तरह के सभी शोध-परक अनुमान.

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खड़ी भाषा बोलने के लिए मशहूर और राजस्थान-उत्तर प्रदेश की सीमाओं से सटे चम्बल-ग्वालियर संभाग के श्योपुर विधानसभा की सीट नंबर 1 से लगाकर मीठा-मीठा बोलने वाले मालवा अंचल की राजस्थान बॉर्डर से सटी नीमच जिले की जावद सीट नंबर 230 तक मध्य प्रदेश विधानसभा का विस्तार है. बीच में उत्तर प्रदेश से चिपका सागर संभाग जैसा बुंदलेखंड भी है जहां शौर्य की पताकाएं फहराती रही हैं, तो जातीय गैर-बराबरी के ज्वलंत उदाहरण भी सामने आते हैं. फिर आता है विन्ध्य प्रदेश, जहां का कल्चर बार-बार उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों की दास्तां सुनाता नज़र आता है. इससे आगे बढ़ें, तो महाकौशल क्षेत्र से निकलने वाली नर्मदा नदी और उसके मुहाने बसे सघन जंगलों में इठलाते फिरते लोकप्रिय पशु-पक्षी और समीपवर्ती महाराष्ट्र कल्चर की झलक मिलती है. फिर मध्य का हिस्सा स्वागत को बेताब दिखाई देता है जहां सब-कुछ है: नर्मदा भी, बेतवा भी, शेर भी और सियार भी, आदिवासी भी-दलित भी-मुस्लिम भी और अन्य सभी भी. इसके बाद घेरा बनाते हुए महाराष्ट्र और गुजरात की सीमाओं से गुजरकर महाकालेश्वर की अधिष्ठान नगरी उज्जैन और उसका समूचा आंगन आता है. जिसे मालवा और निमाड़ कहते हैं, वहां पग-पग रोटी, डग-डग नीर के किस्से आज भी खूब प्रचलित हैं.

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जिस मालवांचल यानी उज्जैन और इंदौर संभाग की 66 सीटें भोपाल में सत्ता में विराजित करवाने में क्रूशियल रोल अदा करती आई हैं, उनके बजाय चम्बल-ग्वालियर संभाग की 34 सीटों के परिणामों को इस बार तुलनात्मक रूप से ज्यादा अहमियत दी जा रही है. खैर, मालवांचल पर ही फिर से लौटते हैं: 2018 में कांग्रेस के खाते में 36 सीट, भाजपा के पाले में 27 सीट और शेष तीन सीट कांग्रेस के बगावती उम्मीदवारों के पक्ष में चली गईं थीं. अबकी बार के रुझानों के अनुसार भाजपा 30 सीटों का आंकड़ा क्रॉस कर सकती है।

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2018 चुनावों के मुकाबले भाजपा कुल 34 सीटों वाले चम्बल-ग्वालियर इलाके में इस मर्तबा 7 की अपेक्षा 12 से ज्यादा सीटें हासिल कर सकती है. वो महाकौशल क्षेत्र की 38 सीटों में पिछले चुनाव में 14 सीट ही ले पाई थी, जबकि इस बार वो 15 के आंकड़े से ऊपर जा सकती है. मध्य भारत बोले तो भोपाल-नर्मदापुरम संभागों से मिली रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी कुल 36 सीटों में से 23 सीटों की अपनी पुरानी टैली को 25 के गेम तक ले जा सकती है. आशय ये है कि जिन क्षेत्रों की सीटों पर पिछले चुनाव में गड्डे पड़े थे, उनमें से कम से कम 9 स्थानों को तो बूर दिया जाएगा!

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कांग्रेस की आस कहां बंधी है: विन्ध्य प्रदेश में 30 सीटों में से उसे मात्र 6 सीट नसीब हुई थीं और बुंदेलखंड में उसे 26 में से 10 सीट मिली थीं. अनुमान लगाये जा रहे हैं कि पार्टी को विन्ध्य प्रदेश में इस बार 15 सीट तो बुंदेलखंड में 13 सीट मिल सकती हैं. पार्टी को चम्बल-बुंदेलखंड में कम से कम 20 सीट मिलने की संभावना है. कमल नाथ और आदिवासी फैक्टर की बिना पर वो महाकौशल में भी 20 सीटों के आस-पास रह सकती है. मध्य भारत में वो 10 सीटों के इर्द-गिर्द सिमटी दिखाई दे रही है. जहां तक मालवा-निमाड़ का मामला है, वो 32 से अधिक सीटें पा सकती है. मोटी-मोटी बात ये है कि जिन क्षेत्रों की सीटों से नुकसान हुआ था उनमें से कोई 12 सीटें फायदे में दिखलाई पड़ रही हैं!

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आंकड़ों की ये कहानी कांग्रेस पार्टी और भाजपा को लगभग बराबरी पर ला रही है! तो क्या तस्वीर एक त्रिशंकु विधानसभा बनने की तरफ इशारा कर रही है! इस यक्ष प्रश्न का समाधान ढूंढने की कोशिश करते हैं: जादुई अंक तो 116 है और जिन बाकी 14 सीटों के परिणामों पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं, वो ही शायद इस बार के जनादेश का अंतिम वाक्य होगा! राज्य में हुए विगत चार विधानसभा चुनावों में (2003 से 2018 तक) बसपा, सपा, अन्य दलों सहित निर्दलीय प्रत्याशियों ने क्रमशः 19, 16, 7-7 सीटें जीती थीं. कमोबेश कुछ इसी तरह के हालात इस वर्तमान चुनाव के परिणामों में भी सामने आ सकते हैं! ऐसी स्थिति में ऐसा लगता है कि इस बार भी निर्दलीय और अन्य गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई विधायकों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होगी।

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मतदाताओं का पॉपुलर मूड क्या दिखाई दिया था?

(1) वोट फॉर चेंज!
(2) कैंडिडेट की प्रोफाइल!
(3) उसके हिस्से में आने वाले लाभ और हानि, तत्काल के भी और उसके बाद के भी!