अपनी भाषा अपना विज्ञान: कृत्रिम न्यूरान कोशिका का निर्माण

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अपनी भाषा अपना विज्ञान: कृत्रिम न्यूरान कोशिका का निर्माण

अपनी भाषा अपना विज्ञान के दूसरे अंक में मैंने ब्रेन कम्प्युटर इंटरफेस (BCI) की अवधारणा और कुछ उदाहरणों का उल्लेख किया था। यह भी बताया था कि धातुई-यांत्रिक इंप्लांट के स्थान पर यदि जैविक कार्बनिक यौगिकों के उपांग हो तो बेहतर होगा।

मस्तिष्क की कार्यात्मक और रचनात्मक इकाई है ‘न्यूरॉन कोशिका’। शरीर के दूसरे अंगों और उत्तकों की कोशिकाओं की तुलना में न्यूरॉन के रंग ढंग और विशिष्ठताएं निराली हैं।

क्या कृत्रिम न्यूरॉन कोशिकाएं बनाना संभव है जो बायोलॉजिकल जैसे गुण धारण करती हो? स्वीडन की लिंकोपिंग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कृत्रिम जैविक (ऑर्गेनिक) न्यूरॉन का निर्माण करा है जिनके गुण प्राकृतिक तंत्रिका कोशिकाओं से काफी हद तक मिलते जुलते हैं।

सामिआन फाबिआनो की टीम ने Conductance Based organic electrochemical nerve cells (C-OECN) विकसित करें। कृत्रिम न्यूरॉन कोशिकाएं जो विद्युत-रासायनिक क्रियाओं को अंजाम देती हैं।

प्राकृतिक न्यूरॉन कोशिकाओं में अनेक विशेषताएं होती है। वे अनेक प्रकार के काम संपादित करती हैं। उनकी काया (Cell Body) की बाहरी झिल्ली की अंदरूनी और बाह्य सतहों पर सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड, कैल्शियम आदि अनेक प्रकार के आयन्स रहते हैं, जो अंदर बाहर आते जाते कुछ मिलीवोल्ट के विद्युतीय आवेग बनाते व मिटाते रहते हैं।

ये आवेग एक कोशिका से दूसरी सैकड़ों हजारों कोशिकाओं के मध्य समस्त दिशाओं में बहते रहते हैं, बंद-चालू होते हैं।
उद्दीपनशीलता एक प्रमुख गुण है। (Excitability) स्वीडन के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित (C-OECN) में न्यूरॉन कोशिकाओं के 20 प्रमुख गुणों में से 15 संभव हो पाए हैं। सबसे खास है झिल्ली पर आयन के आदान-प्रदान द्वारा विद्युतीय गतिविधि का संचार होना।

शुरू में यह काम सिलिकॉन पॉलीमर पर किया गया था जो आयन्स की सान्द्रता से प्रभावित नहीं होते थे। फिर भी 2018 में फाबिआनो और साथियों ने विद्युत संदेश प्रवाहित करने वाले सिलिकॉन पालीमर विकसित कर लिए थे। हाल ही के वर्षों में महीन नरम, मुड़ सकने वाली झिल्लियों पर ऑर्गेनिक इलेक्ट्रोकेमिकल सर्किट्स का हजारों की संख्या में मुद्रण संभव हो गया है। कृत्रिम न्यूरॉन कोशिकाओं में विद्युतीय वोल्टेज को कम ज्यादा करना और उनकी फायरिंग की गति को नियंत्रित करना संभव है।

एक प्रयोग में (C-OECN) टाइप के न्यूरॉन्स को एक चूहे की वेगस नर्व से जोड़ा गया। यह नाड़ी ब्रेन से निकल कर छाती व पेट के सभी अंगों को सप्लाई करती है। कृत्रिम कोशिकाओं की सक्रियता के चलते, वेगस नाड़ी के कार्यकलाप पर असर पड़ा और हृदय गति कम हुई। यह खोज मेडिकल इलाज में नई संभावनाओं के द्वार खोलती है।


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जैविक विद्युत-रासायनिक न्यूरॉन कोशिकाओं के छोटे-बड़े समूह और उनके मध्य बिछाए गए परिपथ, धातुओं से बने नॉन-ऑर्गेनिक विद्युतोद  (Electrodes and Implants) की तुलना में बेहतर रहेंगे क्योंकि ये जैवसंगत (Biocompatible) है। मुलायम और नमनीय हैं तथा शरीर के इम्यून तंत्र और मेटाबॉलिज्म से छेड़छाड़ नहीं करते हैं। इनके विरुद्ध विदेशी बहिरागत जैसा व्यवहार नहीं होता है। मेटल धातु से बने कृत्रिम नेटवर्क की तुलना मे जैविक एलेक्ट्रोड को सक्रिय रखने के लिए कम बैटरी की जरूरत पड़ती है। कम ऊष्मा पैदा होती है।

शोध पत्रिका नेचर मटेरियल के हाल ही के एक अंक में प्रकाशित लेख के प्रमुख लेखक ऋषिकेश ने स्वीकार किया कि अभी तो बस शुरुआत है। न्यूरॉन कोशिकाओं के 15-20 गुण कैसे उनके आपसी परिपथों द्वारा संपादित कामों को अंजाम देते हैं, इस बारे में हम बहुत कम जानते हैं। जैसे जैसे यह समझ विकसित होगी वैसे वैसे ब्रेन की कार्यप्रणाली उजागर होती जाएगी और मानव भविष्य में कृत्रिम न्यूरॉन कोशिकाओं के जटिलतर परिपथ डिजाइन करना, उन्हें बड़ी संख्या में मुद्रित करना और नर्वस सिस्टम के नाना प्रकार के स्थलों पर उनका असर डालना सीखता जाएगा। धीरे-धीरे ये काम ऐसे लगेंगे जैसे मानो ‘बुद्धि’ सक्रिय है।

यह मजेदार तथ्य है कि अनेक मशीनों को गढ़ा इंसान ने फिर उन मशीनों की कार्यप्रणाली से समझ बनी कि ‘अरे हमारे या अन्य प्राणियों के शरीर का फलां फलां अंग ऐसे काम करता होगा’।

डिजिटल कैमरा और हमारी आंखें, काकलियर इंप्लांट और हमारे अंदरूनी कान का असली काकलिया, कम्प्युटर व कृत्रिम न्यूरॉन तथा हमारा मस्तिष्क, वायुयान और पक्षियों का उड़ना, रेडार और चमगादड़ की उड़ान, मछलियों का तैरना और पनडुब्बी। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।

C-OECN की प्रभावशीलता दर्शाने वाला एक प्रयोग ‘वीनस फ्लाई ट्रैप’ नामक मांसाहारी पौधे के साथ किया गया। जैसे ही कोई कीड़ा कटोरे नुमा पत्ती पर बैठता है, उसका ढक्कन बंद हो जाता है और जहरीले रसायनों के रिसाव से वह कीड़ा मर कर भोज्य पदार्थ बन जाता है।

जैविक कृत्रिम न्यूरॉन कोशिकाओं की एक छोटी सी चिप इस पौधे में फिट कर दी गई तथा उसके कोटर के ढक्कन के खुलने, बंद होने की प्रक्रिया पर नियंत्रण किया गया।

जैविक सेमीकंडक्टर्स से बनी बायोएलेक्ट्रोनिक चिप शरीर के अंगों में आसानी से घरोपा बना लेती है, रिश्ते विकसित कर लेती है, जरूरत हो तो Biodegradable हो सकती है। इनका प्रोग्रामिंग किया जा सकता है।

कृत्रिम उपांगों के इतिहास के आरंभिक उदाहरणों मे हम जूता, छड़ी, चश्मा से शुरू करते हुए लंबी यात्रा तय कर चुके हैं। कृत्रिम अंग (जयपुर फुट) की उपयोगिता सर्वविदित है। बायोलोजिकल आदान प्रदान का इतिहास नया है। रक्तदान एक शुरुआती उदाहरण था। बाद मे अंगदान का उपयोग सफल होने लगा। प्रयोगशाला मे टिशू कल्चर द्वारा लिवर, किडनी आदि अंगों के निर्माण पर प्रगति हुई है। हजारों कृत्रिम लेकिन आर्गेनिक न्यूरॉन कोशिकाओं के परिपथों की चिप की बड़ी संख्या मे प्रिंट करके नर्वस सिस्टम में उन्हें फिट कर पाना एक चमत्कार होगा।

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