यात्रा ;कोहरे से लिपटा हुआ था वो , सूरज जिसके पीछे से झाँक रहा था

कोहरे से लिपटा हुआ था वो , सूरज जिसके पीछे से झाँक रहा था

दुनिया सात प्राकृतिक अजूबे मे से एक टेबल  माउंटेन

कोहरे से लिपटा हुआ था वो ,
सूरज जिसके पीछे से झाँक रहा था
बह रही थी वहीं कहीं शीतल बयार
जगा था अभी अभी उस पहाड़ के निचे
एक सोया हुआ शहर
इस शहर को कौन  जनता
यदि ये पहाड़ ना होता ?
ये पहाड़ नहीं  है ,ये  जमे हुए से पत्थर भी  नहीं है ,
ये पहचान है इस देश की , यहीं कहीं से
होमोसिपियांस की उत्पत्ति की कोई
कथा कही सुनी जाती है
ये पहाड़ तो यादें है उस विकास यात्रा की
जिसने अमीबा से आदमी तक
जीवन का सफ़र देखा है
देखी जिसने आदिम सभ्यता
सहेज रहा है अभी भी जीवन की जाने कितनी
जीव विविधता , कौन कहता है की ये पहाड़ निर्जीव है ?
इसकी दरारों से आती है सांसों की आवाज
इसकी छातियों से फूटते हैं झरने
रिसते रहते है बूंद बूंद लहू के कतरे
अचानक कहीं किसी पहाड़ से फूट पड़ती है
आंसुओं की धार ,बनती है तब एक नदी
बिलखती है नदी जब रोता है पहाड़ .
अपने सर पर हजारों टन का आकाश
उठाये  खड़ा है यह , अपने पुरे वजूद के साथ
थकता नहीं ये कभी ?
आसान नहीं है  यूँ ,किसी का पहाड़ सा हो जाना
पहाड़ सा स्थिर होने के लिए
खाने होते है अनगिनत थपेड़े
सहनी होती है  अपने ही
शिखरों की तीखी ऊँची नौक ,
की समंदर से लड़ना होता है रोज
की जमा कर रखने पड़ते है अपने ही पाँव
हिलना नहीं होता ,नहीं तो आ जाता है भूचाल
डिगना भी नहीं होता है ,की डिगे तो
हो जाओगे पसरे हुए ढेर ,की फिर कौन पूछेगा तुम्हें
कह कर पहाड़ .पहाड़ बने हो पहाड़ बने रहो .

पहाड़ पर लिखी ये कविता किसी साहित्यकार की कविता के साथ दूध में शक्कर की तरह एकाकार होती चली गई .याद नहीं किस पंक्ति को कहाँ पढ़ा था जो यहाँ इस तरह लिख गई , मिश्रित से भाव लिए यह एक नवीन पहाडी रचना बन गई  तो यही समर्पित है  टेबल माउंटेन  की यात्रा को .

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हम देखने आये है दुनिया के प्राचीनतम पहाड़ों में से एक है जिसकी संरचना करीब पचास करोड़ वर्ष पुरानी है, मेरे सामने था कोहरे से लिपटा वो पहाड़ जिसके आगे हमारी आन बान  और शान हमारा हिमालय बहुत नया है .एक पर्वत शृंखला जो कई किलोमीटर तक इस तरह बनी है जैसे कोइ टेबल हो ?मतलब यह ऊपर जाकर टेबल की तरह एक सपाट जगह जहाँ शिखर नहीं है ,प्लाट काटे जा सकते है .पहाड़ पर समतल मैदान हो जैसे .तो अभी  यात्रा के बीच एक रोमांचक यात्रा शेष थी ,एक प्राकृतिक अजूबे को देखने की .युगों से खड़ा यह पहाड़ जिसकी  इसकी संरचना पाँच  करोड़ वर्ष पुरानी है .हमारे गाइड कम ड्राइवर —- ने कहा  यह सीधी खड़ी ढाल वाला पठार है। दक्षिण अफ्रीका का ऊपर से चपटा दिखने वाला पर्वत 60 लाख सालों के अपरदन से बना है आज आप इसे नहीं देख पाएंगी ,देखिये ना कितना कोहरा है शहर के तीन स्थानों पर यह सूचना डिस्प्ले होती है की टेबल  माउंटेन ओपन है या क्लोज ,वो देखिये सामने आज मौसम बेहद  अच्छा है पर आप की किस्मत ?कोहरा बहुत ज्यादा है .  और आज ही यह खुला  है कल सन्डे है बंद रहेगा रोपवे . एक उदास भाव मन में था सुदूर दक्षिण अफ्रीका की यात्रा क्या कभी जीवन में दुबारा होगी? शायद नहीं? तो क्या हम इतनी दूर से इतने पास आकर भी के दुनिया सात प्राकृतिक अजूबे मे से एक टेबल  माउंटेन  को नहीं देख पायेंगे ?

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मैं जल्दी हार नहीं मानती ,अंतिम स्थिति तक यह विश्वास बचाए  रखती हूँ कि ईश्वर है साथ जो धैर्य की परीक्षा लेते रहते है, जब पास कर  देते है तो रास्ते खुद ही खोल देते है !विश्वास था  तक कुछ होगा जरूर  जिस प्रकृति ने यहाँ तक बुलाया है वो करिश्मे दिखाने के भी करिश्मे कर सकती है ,इस विचार के आते ही हमने निर्णय लिया की जहाँ तक गाड़ी जाती है ले लीजिये वहाँ तक का तो नजारा देखा ही जा सकता है ,कार पहाड़ चढने लगी ,एक मनोहारी  पहाड़ी  घाटी  वाला चौड़ा रास्ता जिस पर गाड़ी से जाते हुए भी सुखद लग रहा था .

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लगा कार ही से ऊपर तक चला जाय तो ,पर एक कल्पना ही थी ,खड़े पहाड़ पर कार ?लेकिन विश्वास ने अपना रंग दिखाया और रास्ते खुलते चले गए .

रोमांच का ठिकाना नहीं रहा जब हम केबल स्टेशन पर पंहुचे बादलों और कोहरे ने टेबल  माउंटेन को छोड़ दिया था! ड्राइवर ने कहा वाह “यू आर लकी” —- क्लोज का डिस्प्ले हट गया है देखिये ? औरडिस्प्ले बोर्ड  ओपन दिखा रहा था बस फिर क्या था .लगा पल्लवी को यह बताना बड़ा रोचक रहेगा , यहाँ पंहुंचने की योजना और व्यवस्था उसी ने की थी हमारी बेटी पल्लवी ने, जिसने कहा था कुछ छोड़ना पड़े तो कुछ और स्थान छोड़ देना लेकिन यह नहीं ,जरुर जाना क्योंकि पर्यटकों द्वारा सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला केप टाउन दक्षिण अफ्रीका का सबसे खूबसूरत शहर है। यह दक्षिण अफ्रीका का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर भी है। केप टाउन प्रकृति से भी घिरा हुआ बहु सांस्कृतिक शहर भी है। केपटाउन में मौजूद पहाड़, समुद्र आदि इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देते हैं। यहां स्थित कर्सटनबोस्च बोटेनिकल गार्डन को यूनेस्को की विश्व धरोहर का दर्जा मिला हुआ है। आप फाल्स बे में सुनहरे समुद्र तटों पर घूमते हुए पेंगुइन देख सकते हैं और वाटरफ्रंट बोर्डवॉक पर टहलते हुए आप विशालकाय व्हेल को भी देख सकते हैं। आप यहां खूबसूरत मॉल में भी शॉपिंग कर सकते हैं, साथ ही यहां के रेस्टोरेंट में खाना भी बेहद स्वादिष्ट होता है।

इस यात्रा का एक रोचक प्रसंग भी बता  ही देती हूँ या अवसर  हमें मिला था मध्य प्रदेश शासन के द्वारा और इसके लिए प्रेरित किया था देश के ख्यात नाम संपादक -साहित्यकार  श्री रविन्द्र कालिया जी ने ,एक दिन  मैं भोपाल से इंदौर के  बीच यात्रा कर रही थी ,कालिया जी का किसी  रचना के सन्दर्भ में फोन आया बातचीत में उन्होंने बताया की आप हिंदी सम्मेलन में क्यों नहीं अप्लाई करती प्रत्येक राज्य से सरकारी अधिकारी तो जाते है इसमें ,आप संस्कृति विभाग में एक आवेदन भेजिए , विभाग को बोलिये आप सरकार की प्रतिनिधी बन कर जाइए यह  इस बार दक्षिण अफ्रीका में है . मैंने उन्हें जी पता कारती हूँ  कह कर फोन  बंद कर दिया ,दर असल मैंने सुना था सिन्धी सम्मेलन ,रास्ते भर सोचती रही मुझे सिन्धी सम्मेलन में क्यों जाना चाहिए ? घर आकर यह बात अपने पति देव से कही  ,वे खूब  हँसे — बोले सबसे पहले अपना फोन बदलो ,आवाज तो आती नहीं ,सम्मेलन सिन्धी नहीं ,विश्व हिंदी सम्मेलन है ?अब हंसने की बारी मेरी थी , मुझे अपने आप पर  हंसी आई ,और एक दिन आवेदन भेज दिया विभाग को कुछ प्रयास भी करने पड़े पर स्वीकृति  आते ही एक सुखद अवसर  मिला ,मैं मध्यप्रदेश की प्रतिनिधी बन कर पंहुची सम्मेलन में ,जहाँ मेरी प्रिय कथाकार ममता जी ,कालिया जी भी मिले तो सिंधी  सम्मलेन की बात बताईवे भी खूब हँसे  —————

622799 448727831836860 928951402 oनोवें  विश्व हिंदी सम्मलेन  में मुझे मध्य प्रदेश  का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला था और इसी बहाने  मैं देखना चाहती थी मोहन करमचंद गांधी को महात्मा बनाने वाले  दक्षिण अफ्रीका को .मैं देखना  चाहती थी हमारे बाद आजाद होने के बावजूद हमसे ज्यादा तेजी से विकास की और अग्रसर गुलामों के प्रतीक बन जाने वाले  उन  लोगों को जो अब आजाद है और जिनकी नयी पीढ़ियों ने अमेरिका जैसे देश  पर राज करना सिख लिया है .

 

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विश्व हिंदी सम्मेलन के समापन के बाद हम पंहुचे थे केपटाउन दक्षिण अफ्रीका की राजधानी है। केप टाउन दक्षिण अफ्रीका का दूसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला शहर है। यह वेस्‍टर्न केप की राजधानी है। यहाँ  दक्षिण अफ्रीका का संसद भवन भी है। यह जगह बंदरगाह, पर्वत और बाग आदि के लिए प्रसिद्ध है। टेबल मांउटेन, टेबल माउंटेन नेशनल पार्क, टेबल माउंटेन रोपवे, केप ऑफ गुड होप, चैपमैनस पीक, सिगनल हिल, विक्‍टोरिया एंड अल्‍फ्रेड वाटरफ्रंट आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं और सबसे ज्यादा दिलचस्पी अजूबे  देखने में ही होती है . हमारे सामने अब उस अजूबे को देखने के द्वार खुल गए थे और रोपवे के टिकट ले हम केबल कार में सवार थे ,अद्भुत सारे शहर को इस उंचाई से देखना . टेबल माउंटेन समतल सतह की कम ऊँचाई वाला एक पहाड़ है। यह पहाड़ 1086 मीटर ऊँचा है। यह केप टाउन के पश्चिमी भाग में स्थित है। इस पहाड़ पर से केप टाउन शहर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। इस पहाड़ की चोटी पर जाने के लिए रोपवे लगा हुआ है। यह पहाड़ मुख्य रुप से टेबल नेशनल पार्क का एक हिस्सा है।435256 view from the table mountain cable car cape town

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रोपवे भी इतना बड़ा जिसमें एक बार में २० -२५ लोग जा सकते है !गोल आकार की यह केबल कार लिफ्ट मार्ग जो  टेबल माउंटेन पर जाने के लिए बनाया गया है। यह भी एक अनूठी यात्रा का अनूठा हिस्सा ही है शायद यह भी केप टाउन के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में एक है। इस रोपवे का निचला स्टेशन ट्रेफलगर रोड से 302 मीटर की ऊँचाई पर है। जबकि इस रोप वे का ऊपरी स्टेशन 1067 मीटर की ऊँचाई पर है। ऊपरी स्टेशन से केप टाउन शहर का अदभूत नजारा दिखता  है , हाँ उसी आदिम केप टाउन  का   जो हजारों साल पहले आदिम जनजाति खोई का निवास स्‍थान हुआ करता था। 1652 ई. में यहां पहली बार यूरोपियनों ने प्रवेश किया था। सर्वप्रथम यहां डच लोग आए। इस जगह पर 1652 ई. में जान वान रिविक ने एक व्यापार केंद्र की स्थापना की। डचों के पीछे-पीछे जर्मन तथा फ्रेंच आए। यूरापियनों के आने के बाद केप टाउन धीरे-धीरे बसना शुरु हो गया। फिर स्‍टेल्‍लनबोसच, पर्ल तथा केप वाइनलैंड जैसे उपशहरों की स्‍थापना हुई। । अब यह एक विश्‍वस्‍तरीय शहर है जो अपने मे प्राचीन  सभ्‍यता-संस्‍कृति को संजोए हुए है अत्यंत आधुनिक शहरों में भी शुमार है .हम खड़े थे एक  ऐसे पहाड़ पर जो  अपने शिखर पर चपटा यानी  फ्लेट है जिसपर एक आलीशान रेस्टोरेंट बना है.

केपटाउन शहर के सामने है एक सपाट छत  की पहाड़ीजो चारों और से दिखाई देती है  इसी को कहते हैं  टेबल माउंटेन, केप टाउन में घूमने के लिए सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। ये माउंटेन वनस्पतियों और जीवों की 1500 से अधिक प्रजातियों का एक सुगम्य घर है। यहां रहते हुए, आप या तो एक रोमांचक लंबी पैदल यात्रा यात्रा के लिए जा सकते हैं या घाटी के मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।  एक विशाल वनस्पति उद्यान के साथ एक ऐसी जगह जहां औषधीय जड़ी बूटियों और पौधों को 1250 वर्गमीटर क्षेत्र में फैलाया गया है। टेबल पर्वत की सबसे लोकप्रिय विशेषता  काले प्रस्तर का पठार है जो लगभग तीन किलोमीटर चलता है। पठार पूर्व में डेविल्स पीक और पश्चिम में लायन्स हेड से घिरा हुआ है। इन पर्वतों को बादलों (orographic clouds) के लिए भी जाना जाता है .जानती हूँ मैं बादल का विज्ञान कि वायु मण्डल में मौजूद जलवाष्प के संघनन से बने जलकणों या हिमकणों की दृश्यमान राशि बादल कहलाती है। मौसम विज्ञान में बादल को उस जल अथवा अन्य रासायनिक तत्वों के मिश्रित द्रव्य मान के रूप में परिभाषित किया जाता है जो द्रव रूप में बूंदों अथवा ठोस रवों के रूप में किसी ब्रह्माण्डीय पिण्ड के वायु मण्डल में दृश्यमान हो ,   परकिसी लेखक की यात्रा क्या  किसी नदी पहाड़ की वैज्ञानिक दृष्टी से परे कल्पना लोक की सैर नहीं होती ? यात्रा के लिए लेखक अभिशप्त होता है उसे चाँद के पार जाना होता है ,उसे ही तो हिमालय के शिखर को घवल चांदनी सा बताना होता है .वह रुका कहाँ था जो मैं रुक जाती ?लेखक अपने अन्दर जाने कितने लेखको को लादे घूमता रहता है .वह पत्थरों के युग से सुपर फास्ट यान तक बस भटकता रहा है कभी आवश्यकता के साथ तो कभी बस यूँ ही .एक देश से दुसरे देश जानेवाले लेखक अपने साथ देश विदेश के साहित्य को भी जीवंत देखना चाहते है .जाने कहाँ से  केबल की खिड़की से बाहर देखते हुए मुझे याद आ जाती है परवीन शाकिर–इतने घने बादल के पीछे, कितना तन्हा होगा चाँद. पर चाँद की तनहाई को ख़त्म होने में अभी देर है ,दोपहर का दूसरा पहर है अभी तो .शाम के साये  जाने पर ही चाँद अपने सितारों की महफ़िल में आयेगा .यदी एक रात इसी पहाड़ पर खुली छत पर चाँद को निहारते हुए गुजारने की इजाजत मिले तो चाँद कहेगा सीढियां लगा लो आधे रास्किते तो तुम आ ही गई हो ?मैं मन ही मन मुस्कराने लगती हूँ .आसमान से घरती पर आवाजाही करती हूँ पर धरती की वनस्पति नहीं है ये  जंगली पुष्प जो जगह जगह उगे हुए है .अभी तो खजूर में अटके हुए से हम आसमान और धरती के बीच इस पहाड़ टेबल पर विचार रहे है .देख रही हूँ  वो सियार या  लोमड़ी जैसा कोई वन्य जीव कैसे सुनहरे काले मिश्रित बालों को धूप छाँव की तरह झटक रहा था लगा जैसे बादलों की आवाजाही जा रिमोट है उसके बालों में .हम आगे बढ़ते है ,कुछ मित्रवत होते पर्यटक भी साथ चल रहे है .भारतीय है गुजरात से हैं .हम एक दुसरे के फोटो लेते है .चलते चलते थक जाती हूँ सोचती हूँ सरकार को यहाँ ऑटो भी रख देना चाहिए राही  थक जाएँ तो भी उपयोग कर सकते है .दृश्य तो नहीं छूटेंगे. काले बादल दूर जाते दिखाई देते है  समझ में नहीं आता मुझे मैं दूर निकल आई हूँ या बादल चले गए है ?आने लगे है अब सफ़ेद कपास के बादल . कपासी बादलों  की उत्पत्ति वायु की संवहनीय धाराओं के कारण होती है जिसके कारण ये ऊर्ध्व धर रूप से विकसित होते हैं। इनके कपास के ढेर जैसा दिखने के कारण यह नाम है। शीत वाताग्र पर ऐसे बादल, वायु के ऊर्ध्व धर रूप से ऊपर उठने के कारण बन जाते हैं।झक्क सफ़ेद बादलों की सुन्दरता में मुझे ऊर्जा और उत्साह की झलक दिखाई देती है .

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हम केप टाउन सबसे सुन्दर स्थल को देख और जी रहे है निराशा भरे उन काले बादलों को तो जाना ही था .मैं पलट कर उन काले जल भरे सायों को मन ही मन धन्यवाद देती हूँ तुम ना छटते तो मैं यह अजूबा कैसे देखती ?आते जाते रहा करो नीर भरे बादलों .धरती तुम्ही से सींचती है .तभी तो वसुधा हरी चुनरिया ओढ़ लेती है .तुम अभी मजबूत रहना यहाँ वन्य सम्पदा अभी बची हुई है .हमारे देश में जाने कितने पहाड़ उदास है जानते हो क्यों  विन्ध्याचल  .सत पुड़ा ,मेकल ,हिमालय तक दरकने लगे है हरे -भरे पहाड़, खूब घने जंगल वाले पहाड़ जिन पर जड़ी बुटियाँ थीं, पक्षी थे, जानवर थे सब ख़त्म होते जा रहे है ।पहाड़ खदानों के नाम पर खोदे जा रहे है .वे पहाड़ जो नदियों के जनक थे .वे पहाड़ जो नदियों के रास्ते थे .जीवन के रहस्यों से भरे थे सब जैसे नंगे कर दिए गए हैं ,डेम ,खदान ,बिजली ,सीमेंट कंक्रोरीट के जंगल बना कर .उनकी रौद्रता  के भयावह मंजर हम देख चूके हैं , तुम प्रकृति के जीवन की उत्पत्ति के रहस्यों को सहेजे रखना .हम हिन्दुस्तानी आडम्बरों के साथ गोवर्धन पर्वत की पूजा परिक्रमा तो करते पर बचाते नहीं है नदी पहाड़ आजकल .तुम अफ्रीका के गोवर्धन ही हो मैंने एक परिक्रमा की तुम्हारी  तुम्हे मेरा प्रणाम .

कर्स्टनबोश राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान – Kirstenbosch National Botanical Gardens )टेबल माउंटेन के ठीक बगल में बैठा यह हरा-भरा वनस्पति उद्यान साल भर यात्रियों की भीड़ भाड़ से भरा रहता है। 1913 में स्थापित, इसे अपने पड़ोसी क्षेत्र की वनस्पतियों को संरक्षित करने के लिए खोला गया था। कहा जा रहा है कि, उद्यान न केवल केप टाउन में बल्कि पूरे दक्षिण अफ्रीका में उगने वाली वनस्पतियों को संरक्षित करता है.

प्रोटिया साइनाराइड्स , जिसे किंग प्रोटिया भी कहा जाता है, एक फूल वाला पौधा है । यह प्रोटिया का एक विशिष्ट सदस्य है। इस प्रजाति को जाइंट प्रोटिया , हनीपोट या किंग शुगर बुश के नाम से भी जाना जाता है। यह व्यापक रूप से पश्चिमी और दक्षिणी भागों में वितरित  है.किंग प्रोटिया दक्षिण अफ्रीका का राष्ट्रीय फूल  है । यह दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रीय वनस्पति संस्थान द्वारा संचालित प्रोटिया एटलस प्रोजेक्ट का प्रमुख भी है ।राजा प्रोटिया के कई रंग रूप हैं और बागवानों ने 81 उद्यान किस्मों की पहचान की है, जिनमें से कुछ को इसकी प्राकृतिक सीमा में  लगाया गया है।

शानदार कर्स्टनबोश हाइकर्स और प्रकृति प्रेprotea sugar bushes sugar bush exotic thumbnailठीक वैसी लगी जैसे देव लोक से किसी सुदर्शन चक्र से बिखरती कोई दिव्य रोशनी हो वह जो मयूर प्रजाति के किसी पक्षी जोड़े पे पंखों को चमका रही थी .मैं चलती रही  उस दिव्यता को पकड़ने इतना शायद ही कभी चली थी ,पर दूर थे वे पहाड़ और वह रौनक ,जिसे केवल अनुभूत ही किया जा सकता था.

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प्रकाश और ध्वनि कोई पकड़ सका है भला कभी ?यह बात समझ आते ही मैं  उस उजाले और रंगों को अपने अन्दर जितना भर कर ला सकती थी ले आई .वो पहाड़ जो शायद दुबारा देखना संभव ना हो पर वो रोशनी रोज  आती है मेरे घर की खिड़की से ,हमने धरती के तुकडे बांटे थे द्वीप, महाद्वीप, देश,देशान्तरों से पर हवा ,पानी,चाँद और सूरज की सरहदें नहीं होती ऩा !वही सूरज धरती के घूमते हुए हम सबके उजाले दे जाता है घर आकर .बस उसके रूप बदलते है जिन्हें देखने हम यहाँ वहां जाते है यात्री बनाकर कर .यायावरी होने का अपना अलग आनंद है ,जारी रहेगी यायावरी जन्मो तक ,फिलहाल आगे चलते है बहुत कुछ अभी बताना है .

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पर्यटकों द्वारा सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला केप टाउन दक्षिण अफ्रीका का सबसे खूबसूरत शहर है। यह दक्षिण अफ्रीका का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर भी है। केप टाउन प्रकृति से भी घिरा हुआ बहु  सांस्कृतिक शहर भी है। केपटाउन में मौजूद पहाड़, समुद्र आदि इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। यहां स्थित कर्सटनबोस्च बोटेनिकल गार्डन को यूनेस्को की विश्व धरोहर का दर्जा मिला हुआ है। आप फाल्स बे में सुनहरे समुद्र तटों पर घूमते हुए पेंगुइन देख सकते हैं और वाटरफ्रंट बोर्डवॉक पर टहलते हुए आप विशालकाय व्हेल को भी देख सकते हैं। आप यहां खूबसूरत मॉल में भी शॉपिंग कर सकते हैं, साथ ही यहां के रेस्टोरेंट में खाना भी बेहद स्वादिष्ट होता है।

Author profile
Dr. Swati Tiwari
डॉ .स्वाति तिवारी

डॉ. स्वाति तिवारी

जन्म : 17 फरवरी, धार (मध्यप्रदेश)

नई शताब्दी में संवेदना, सोच और शिल्प की बहुआयामिता से उल्लेखनीय रचनात्मक हस्तक्षेप करनेवाली महत्त्वपूर्ण रचनाकार स्वाति तिवारी ने पाठकों व आलोचकों के मध्य पर्याप्त प्रतिष्ठा अर्जित की है। सामाजिक सरोकारों से सक्रिय प्रतिबद्धता, नवीन वैचारिक संरचनाओं के प्रति उत्सुकता और नैतिक निजता की ललक उन्हें विशिष्ट बनाती है।

देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कहानी, लेख, कविता, व्यंग्य, रिपोर्ताज व आलोचना का प्रकाशन। विविध विधाओं की चौदह से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। एक कहानीकार के रूप में सकारात्मक रचनाशीलता के अनेक आयामों की पक्षधर। हंस, नया ज्ञानोदय, लमही, पाखी, परिकथा, बिम्ब, वर्तमान साहित्य इत्यादि में प्रकाशित कहानियाँ चर्चित व प्रशंसित।  लोक-संस्कृति एवं लोक-भाषा के सम्वर्धन की दिशा में सतत सक्रिय।

स्वाति तिवारी मानव अधिकारों की सशक्त पैरोकार, कुशल संगठनकर्ता व प्रभावी वक्ता के रूप में सुपरिचित हैं। अनेक पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन। फ़िल्म निर्माण व निर्देशन में भी निपुण। ‘इंदौर लेखिका संघ’ का गठन। ‘दिल्ली लेखिका संघ’ की सचिव रहीं। अनेक पुरस्कारों व सम्मानों से विभूषित। विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ।

विभिन्न रचनाएँ अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में अनूदित। अनेक विश्वविद्यालयों में कहानियों पर शोध कार्य ।

सम्प्रति : ‘मीडियावाला डॉट कॉम’ में साहित्य सम्पादक, पत्रकार, पर्यावरणविद एवं पक्षी छायाकार।

ईमेल : stswatitiwari@gmail.com

मो. : 7974534394